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प्रश्न

विवाह अन्त तक स्थाई बना रहे – इसकी कुँजी क्या है?

उत्तर


प्रेरित पौलुस कहता है कि पत्नी अपने पति के साथ जब तक वह जीवित है "बन्धी" हुई है (रोमियों 7:2)। सिद्धान्त यहाँ पर यह है कि विवाह का बन्धन टूटने से पहले पति या पत्नी किसी एक की मृत्यु होनी चाहिए। यह परमेश्वर की आज्ञा है, परन्तु हमारे आधुनिक समाज में विवाह 51 प्रतिशत समय तलाक में ही समाप्त हो जाते हैं। इसका अर्थ यह है कि लगभग आधे जोड़े जो यह शपथ लेते हैं कि "जब तक मृत्यु हमें अलग न करे" इस शपथ को तोड़ देते हैं।

एक वैवाहिक जोड़े को यह सुनिश्चित करना है कि क्या उनका विवाह स्थाई रूप से अन्त तक बना रहेगा? प्रथम और अन्तिम महत्वपूर्ण विषय परमेश्वर और उसके वचन की आज्ञा को पालन करना का है। यह एक ऐसा सिद्धान्त है जिसे विवाह से पहले ही लागू किया जाना चाहिए। परमेश्वर कहता है, "यदि दो मनुष्य परस्पर सहमत न हों; तो क्या वे एक संग चल सकेंगे?" (आमोस 3:3)। नया-जन्म पाए हुए विश्वासियों के लिए, इसका अर्थ किसी भी ऐसे साथी के साथ निकटता के सम्बन्ध में आरम्भ करना नही है जो कि विश्वासी नहीं है। "अविश्वासियों के साथ असमान जुए में न जुतो, क्योंकि धार्मिकता और अधर्म का क्या मेल-जोल? या ज्योति और अन्धकार की क्या संगति?" (2 कुरिन्थियों 6:14)। यदि केवल इसी एक सिद्धान्त का अनुसरण कर लिया जाए, तो यह बहुत से विवाहों में बाद में होने वाले बहुत अधिक दिल के दर्द और दुखों से बचा सकता है।

एक और सिद्धान्त जो कि एक विवाह को लम्बे समय तक बचाए रखने में सुरक्षा प्रदान करता है वह यह है कि पति को परमेश्वर प्रेम करना चाहिए और अपनी पत्नी को अपने शरीर की तरह प्रेम, आदर और सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए (इफिसियों 5:25-31)। एक मिलता जुलता हुआ सिद्धान्त यह है कि पत्नी को परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना चाहिए और अपने पति के अधीन जैसे "प्रभु के अधीन होते हैं" वैसे रहना चाहिए (इफिसियों 5:22)। एक पुरूष और स्त्री के मध्य में विवाह मसीह और कलीसिया के मध्य के सम्बन्ध का चित्र है। मसीह ने स्वयं को कलीसिया को दे दिया और वह अपनी "दुल्हन" को प्रेम करता, आदर और सुरक्षा देता है (प्रकाशितवाक्य 19:7-9)।

जब परमेश्वर हव्वा को पहले विवाह में आदम के पास लेकर आया, तो वह उसके "मांस और हड्डी" से मिलकर बनी हुई थी (उत्पत्ति 2:21) और वे "एक तन" हो गए (उत्पत्ति 2:23-24)। एक तन होने का अर्थ शरीरिक एकता से बढ़कर है। इसका अर्थ मन और प्राण को आपस में मिलते हुए एक इकाई में निर्मित होना। ये सम्बन्ध कामुक या भावनात्मक आकर्षण से कहीं परे का है और आत्मिक "एकता" के लोक में चला जाता है जो केवल तब ही प्राप्त हो सकती है जब दोनो साथी स्वयं को परमेश्वर और एक दूसरे को समर्पित कर देते हैं। यह सम्बन्ध "मैं और मेरे" के ऊपर नहीं है अपितु "हम और हमारे" के ऊपर केन्द्रित है। यह विवाह के स्थाई बने रहने के रहस्यों में से एक है। एक विवाह को मृत्यु तक स्थाई बने रहना कुछ ऐसा है जिसमें दोनो साथियों को प्राथमिकता निर्मित करनी पड़ती हैं। परमेश्वर के साथ अपने ऊर्ध्वाधर सम्बन्ध को ठोस बनाना एक लम्बी दूरी की ओर चलते हुए यह सुनिश्चित करना है कि पति और पत्नी के मध्य का समतल सम्बन्ध लम्बे समय के लिए स्थाई है, और इसलिए परमेश्वर को सम्मान देने वाला है।

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