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प्रश्न

क्यों परमेश्वर ने इस्राएल को उसके चुने हुए लोगों के रूप में चुना?

उत्तर


इस्राएल देश के बारे में बोलते समय, व्यवस्थाविवरण 7:7-9 हमें बताता है कि, "यहोवा ने जो तुम से स्नेह करके तुम को चुन लिया, इसका कारण यह नहीं था कि तुम गिनती में और सब देशों के लोगों से अधिक थे, किन्तु तुम तो सब देशों के लोगों से गिनती में थोड़े थे; यहोवा ने जो तुम को बलवन्त हाथ के द्वारा दासत्व के घर में से, और मिस्र के राजा फिरौन के हाथ से छुड़ाकर निकाल लिया, इसका यही कारण है कि वह तुम से प्रेम रखता है, और उस शपथ को भी पूरी करना चाहता है जो उसने तुम्हारे पूर्वजों से खाई थी। इसलिए जान रख कि तेरा परमेश्वर यहोवा ही परमेश्वर है, यह विश्वासयोग्य ईश्वर है; जो उससे प्रेम रखते हैं और उसकी आज्ञाएँ मानते हैं उनके साथ वह हजार पीढ़ी तक अपनी वाचा का पालन करता, और उन पर करूणा करता रहता है।"

परमेश्वर ने इस्राएल के राष्ट्र को उसके लोग होने के लिए चुना जिनके द्वारा यीशु मसीह- पाप और मृत्यु से बचाने वाले उद्धारकर्ता को जन्म लेना था (यूहन्ना 3:16)। परमेश्वर ने सबसे पहले आदम और हव्वा को पाप में गिरने के समय प्रतिज्ञा दी थी (उत्पत्ति अध्याय 3)। परमेश्वर ने बाद में यह पुष्टि की कि मसीह अब्राहम, इसहाक और याकूब के वंशज् में से आएगा (उत्पत्ति 12:1-3)। यीशु मसीह ही अन्तिम वो कारण है जिसके कारण परमेश्वर ने इस्राएल को उसके विशेष लोग होने के लिए चुना। परमेश्वर को चुने हुए लोगों की कोई आवश्यकता नहीं है, परन्तु उसने इसे इसी तरह से करने का निर्णय लिया। यीशु को किसी न किसी राष्ट्र के लोगों से तो आना ही था, और इसलिए परमेश्वर ने इस्राएल को चुना।

परन्तु फिर भी, परमेश्वर का इस्राएल को चुनना केवल मसीह को उत्पन्न करने के उद्देश्य मात्र ही नहीं था। परमेश्वर की इस्राएल के लिए इच्छा यह थी कि वह और के पास जाएँगे और उसके बारे में उन्हें शिक्षा देंगे। इस्राएल को इस संसार के लिए याजकों, भविष्यद्वक्ताओं, मिशनरियों का समाज होना था। परमेश्वर की इस्राएल के लिए मंशा एक विशेष लोग होने की थी, एक ऐसे राष्ट्र के रूप में जो अन्यों को परमेश्वर की ओर ले आए और उसने उसे एक छुटकारा देने वाले, मसीह और उद्धारकर्ता की प्रतिज्ञा दी। परन्तु अधिकतर समय, इस्राएल इस कार्य को करने में असफल हो गया। परन्तु फिर भी, परमेश्वर का इस्राएल के लिए अन्तिम उद्देश्य – मसीह को इस संसार में लाने का था – जो कि यीशु मसीह के व्यक्तित्व में पूरी तरह से पूर्ण हो गया।

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