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प्रश्न

परमेश्‍वर यह मांग, खोज, या अनुरोध क्यों करता है कि हम उसकी आराधना करें है?

उत्तर


आराधना "आदर, श्रद्धांजलि, सम्मान, श्रद्धा, भक्ति, स्तुति या महिमा को अपने से श्रेष्ठ व्यक्ति को देना होता है।" परमेश्‍वर आराधना की मांग इसलिए करता हैं क्योंकि वही और एकमात्र वही इसे पाने के योग्य है। वह एकमात्र ऐसा है जो वास्तव में आराधना को लेने का सही अधिकारी है। वह अनुरोध करता है कि हम उसकी महानता, उसकी सामर्थ्य और उसकी महिमा को स्वीकार करें। प्रकाशितवाक्य 4:11 कहता है कि, "हे हमारे प्रभु और परमेश्‍वर, तू ही महिमा और आदर और सामर्थ्य के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएँ सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से थीं और सृजी गईं।" परमेश्‍वर ने हमें रचा है, और यह पलटा नहीं जा सकता है। उसने इस्राएलियों को आज्ञा दी: "तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्‍वर करके न मानना। तू अपने लिये कोई मूर्ति खोदकर न बनाना, न किसी की प्रतिमा बनाना, जो आकाश में, या पृथ्वी पर, या पृथ्वी के जल में है। तू उनको दण्डवत् न करना, और न उनकी उपासना करना; क्योंकि मैं तेरा परमेश्‍वर यहोवा जलन रखने वाला परमेश्‍वर हूँ, और जो मुझ से बैर रखते हैं, उनके बेटों, पोतों, और परपोतों को भी पितरों का दण्ड दिया करता हूँ" (निर्गमन 20:3-5)। हमें यह समझना चाहिए कि परमेश्‍वर की ईर्ष्या पाप से भरी हुई ईर्ष्या नहीं है, जिसे हम अनुभव करते हैं, जो कि घमण्ड से उत्पन्न होती है। यह एक पवित्र और धार्मिकता से भरी ईर्ष्या है, जो किसी अन्य को वह महिमा देने की अनुमति नहीं दे सकती है, जो केवल उसे ही मिलनी चाहिए।

परमेश्‍वर यह अपेक्षा करता है कि हम उसकी आराधना को सम्मान और धन्यवाद से भरी हुई अभिव्यक्ति के साथ करें। परन्तु परमेश्‍वर साथ ही यह अपेक्षा भी करता है कि हम उसके प्रति आज्ञाकारी रहें। वह न केवल यह चाहता है कि हम उस से प्रेम करें; अपितु वह चाहता है कि हम दूसरों के प्रति धार्मिकता से भरे हुए कार्य करें, दूसरों को प्रेम और दया दिखाएँ। इस तरह से, हम स्वयं को जीवित, पवित्र और प्रसन्न करने वाले बलिदान के रूप में प्रस्तुत करते हैं। यह परमेश्‍वर की महिमा करता है और यही हमारी "उचित सेवा" है (रोमियों 12:1)। जब हम एक आज्ञाकारी मन और खुली और पश्‍चाताप से भरी हुई भावना के साथ उसकी आराधना करते हैं, तो परमेश्‍वर की महिमा होती है, मसीही विश्‍वासी शुद्ध होते हैं, कलीसिया की उन्नति होती है, और खोए हुओं को सुसमाचार दिया जाता है। यही सारे तत्व सच्ची आराधना है।

परमेश्‍वर यह भी चाहता है कि हम उसकी आराधना इसलिए भी करें क्योंकि आराधना यीशु मसीह के द्वारा से हमें बचाए जाने की स्वाभाविक और स्वेच्छिक प्रतिक्रिया है। फिलिप्पियों 3: 3 सच्ची कलीसिया, यीशु मसीह में विश्‍वासियों की देह जिसका शाश्‍वतकालीन गंतव्य स्वर्ग है, का वर्णन किया गया है। "क्योंकि खतनावाले तो हम ही हैं जो परमेश्‍वर के आत्मा की अगुआई से उपासना करते हैं, और मसीह यीशु पर घमण्ड करते हैं, और शरीर पर भरोसा नहीं रखते।" दूसरे शब्दों में, कलीसिया को विशेष रूप से परमेश्‍वर के लोगों के रूप में पहचाना जाता है, न कि शारीरिक खतना के द्वारा से। कलीसिया उन लोगों से मिलकर बनी है जो मसीह के आनन्द रहते हुए अपनी आत्मा में परमेश्‍वर की आराधना करते हैं, और उद्धार के लिए स्वयं पर भरोसा नहीं करते हैं। जो लोग सच्चे और जीवित परमेश्‍वर की आराधना नहीं करते हैं, उनमें से कोई भी उसका नहीं है, और उनका शाश्‍वतकालीन गंतव्य नरक निर्धारित है। परन्तु सच्चे उपासकों की पहचान परमेश्‍वर को दी जाने वाली उनकी आराधना से की जाती है, और उनका शाश्‍वतकालीन घर परमेश्‍वर के साथ होता है, जिसकी वे आराधना और भक्ति करते हैं।

परमेश्‍वर हमारी आराधना की मांग, खोज और अनुरोध इसलिए करता है, क्योंकि वह इसके योग्य है, क्योंकि यह मसीही विश्‍वासियों का स्वभाव है कि वे उसकी आराधना करें, और क्योंकि हमारा शाश्‍वतकालीन गंतव्य इसी पर निर्भर करता है। यही छुटकारे के इतिहास का विषय है, अर्थात्: सच्चे, जीवित और महिमामयी परमेश्‍वर की आराधना करना।

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