प्रश्न
इसका क्या अर्थ है कि यीशु मसीह आधारशिला है?
उत्तर
प्राचीन काल से, भवन निर्माता अपनी निर्माण परियोजनाओं में आधारशिला अर्थात् कोने के सिरे के पत्थर का उपयोग करते आए हैं। आधारशिला एक ऐसा मुख्य पत्थर होता है, जिसे सामान्य रूप से एक भवन निर्माण कार्य में कोने पर रखा जाता था, ताकि श्रमिकों को उनके निर्माण कार्य में मार्गदर्शन प्राप्त हो सके। आधारशिला सामान्य रूप में किसी भी भवन के लिए सबसे बड़ा, सबसे ठोस, और सबसे सावधानी से रखा हुआ पत्थर होता था। बाइबल यीशु को आधारशिला या कोने के सिरे का पत्थर के रूप में वर्णित करती है, जिसके ऊपर उसकी कलीसिया का निर्माण होगा। वह मूलभूत है। आधारशिला के स्थापित होने के बाद, यही शेष निर्माण में प्रत्येक तरह के माप को निर्धारित करने का आधार बन जाता है; सब कुछ को इसी के साथ पंक्तिबद्ध या संरेखित होना होता है। कलीसिया के भवन की आधारशिला के रूप में, यीशु हमारे माप और संरेखण का मापदण्ड है।
यशायाह की पुस्तक में प्रतिज्ञा किए हुए मसीह के आने के कई सन्दर्भ पाए जाते हैं। कई स्थानों पर मसीह को "आधारशिला" या नींव के पत्थर के रूप में सन्दर्भित किया गया है, जैसे कि इस भविष्यद्वाणी में: "देखो, मैं ने सिय्योन में नींव का एक पत्थर रखा है, एक परखा हुआ पत्थर, कोने का अनमोल और अति दृढ़ नींव के योग्य पत्थर : और जो कोई विश्वास रखे वह उतावली न करेगा। और मैं न्याय को डोरी और धर्म को साहुल ठहराऊँगा; और तुम्हारा झूठ का शरणस्थान ओलों से बह जाएगा, और तुम्हारे छिपने का स्थान जल से डूब जाएगा'' (यशायाह 28:16-17)। इस सन्दर्भ में, परमेश्वर ने यहूदा के ठट्ठा करने वालों और अभिमानियों से बात की है, और उसने आधारशिला — उसके बहुमूल्य पुत्र — को भेजने की प्रतिज्ञा की जो उनके जीवन के लिए दृढ़ आधार को प्रदान करेगा, यदि वे उस पर भरोसा करते हैं।
नए नियम में, आधारशिला के रूपक का उपयोग होता रहता है। प्रेरित पौलुस की इच्छा थी कि इफिसियों के मसीही विश्वासी मसीह को सर्वोत्तम तरीके से जानें: "इसलिये तुम अब विदेशी और मुसाफिर नहीं रहे, परन्तु पवित्र लोगों के संगी स्वदेशी और परमेश्वर के घराने के हो गए। और प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं की नींव पर, जिसके कोने का पत्थर मसीह यीशु स्वयं ही है, बनाए गए हो। जिसमें सारी रचना एक साथ मिलकर प्रभु में एक पवित्र मन्दिर बनती जाती है" (इफिसियों 2:19-21)। इसके अतिरिक्त, 1 पतरस 2:6 में, यशायाह ने सदियों पहले जो कहा था, ठीक उसी शब्दों में पुष्टि की गई है।
पतरस कहता है कि यीशु, हमारी आधारशिला के रूप में, "परमेश्वर के निकट चुना हुआ और बहुमूल्य जीवता पत्थर है" (1 पतरस 2:4)। आधारशिला भी विश्वसनीय होती है, "और जो कोई उस पर विश्वास करेगा, वह किसी रीति से लज्जित नहीं होगा" (वचन 6)।
दुर्भाग्य से, हर कोई आधारशिला के साथ संरेखित या पंक्तिबद्ध नहीं होता है। कुछ लोग मसीह को स्वीकार करते हैं; कुछ उसे अस्वीकार करते हैं। यीशु "पत्थर को राजमिस्त्रियों ने निकम्मा ठहरा दिया" था (मरकुस 12:10; की तुलना भजन संहिता 118:22 से करें)। जब पूर्व दिशा के लोगों को प्रतिज्ञा किए हुए मसीह के आने का समाचार मिला, तो उन्होंने उसके पास सोना, मुर और लोबान लाने का निश्चय किया। परन्तु जब वही समाचार यरूशलेम में राजा हेरोदेस को मिला, तो उसकी प्रतिक्रिया उसे मारने के प्रयास में व्यक्त हुई। आरम्भ से ही, यीशु "ठेस लगने का पत्थर और ठोकर खाने की चट्टान हो गया" था (1 पतरस 2:8)।
लोग परमेश्वर की चुनी हुई, बहुमूल्य आधारशिला को कैसे अस्वीकार कर सकते हैं? सीधे शब्दों में कहें, तो वे परमेश्वर के निर्माण से अलग ही कुछ और बनाना चाहते हैं। जिस तरह बाबुल के गुम्बद का निर्माण करने वाले लोग परमेश्वर के विरूद्ध विद्रोह कर रहे थे और अपने स्वयं की परियोजना को पूरा करने में लगे हुए थे, जो मसीह को अस्वीकार करते हैं, वे अपने स्वयं के पक्ष में परमेश्वर की योजना की अवहेलना करते हैं। मसीह को अस्वीकार करने वाले सभी लोगों के लिए न्याय की प्रतिज्ञा की गई है: "जो इस पत्थर पर गिरेगा, वह चकनाचूर हो जाएगा; और जिस पर वह गिरेगा, उसको पीस डालेगा" (मत्ती 21:44)।
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इसका क्या अर्थ है कि यीशु मसीह आधारशिला है?