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प्रश्न

कैसे यीशु के द्वारा कहीं गई और की गई बातों को सुसमाचारों में लिपिबद्ध किया गया है जबकि वह अकेला था?

उत्तर


सुसमाचारों में कई बार यीशु के शब्दों को उद्धृत किया गया है या उसके कार्यों का वर्णन किया गया जो उसके जीवन काल में किए गए थे, जबकि वह अकेला था। उदाहरण के लिए, जब यीशु चालीस दिनों के लिए जंगल में रहा (मत्ती 4) या जब उसने गतसमनी की वाटिका में प्रार्थना की (मरकुस 14), वह अकेला था। किसी को कैसे पता चला कि उसने क्या कहा या किया, क्योंकि वहाँ कोई प्रत्यक्षदर्शी गवाह नहीं था कि क्या घटित हुआ था?

सुसमाचार की कथाओं को उस समय नहीं लिखा गया था जब घटनाएँ घटती हो रही थीं, जैसे कि किसी प्रकार की दैनिक डायरी को लिखना; अपितु, उन्हें बाद में स्मृति, अनुसंधान और संकलन के आधार पर अधिकांश ऐतिहासिक कथाओं की तरह लिखा गया। मत्ती और यूहन्ना दोनों अपनी कथाओं में अधिकांश घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी थे। मरकुस और लूका की प्रत्यक्षदर्शी गवाहों तक पहुँच थी। वास्तव में, लूका ने उल्लेख किया है कि उसने अपने सुसमाचार को "सब बातों का सम्पूर्ण हाल आरम्भ से ठीक-ठीक जाँच करके" लिखा है (लूका 1:3)। इस बात की सम्भावना अधिक पाई जाती है कि, मरकुस ने प्रेरित पतरस से अपने सुसमाचार की जानकारी प्राप्त की (1 पतरस 5:13)। लेखकों के पास दूसरा लाभ यह था — और यह एक बड़ा प्रश्न भी है — कि वे पवित्र आत्मा से प्रेरित थे (2 तीमुथियुस 3:16)। सच्चाई तो यह है कि, यीशु ने उनसे प्रतिज्ञा की थी कि पवित्र आत्मा उनकी स्मृति में "वह सब बातें लाएगा, जो कुछ मैं ने तुम से कही हैं" (यूहन्ना 14:26)।

तौभी, शिष्यों को कैसे पता चला कि जब वे यीशु से दूर थे, तो उसके सामने क्या खुला था? एक सम्भावित व्याख्या यह है कि पवित्र आत्मा ने उन्हें बताया कि यीशु क्या कर रहा था, जब वे अपने इतिहास को लिख रहे थे। यह विश्वास करना कि सुसमाचार प्रेरित हैं, हमें आसानी से उस स्पष्टीकरण को स्वीकारने में सहायता देता है।

एक और सरल सी व्याख्या यह है कि यीशु ने बाद में अपने शिष्यों को वह बताया जिसे उन्होंने खो दिया था। मत्ती 4 में जंगल की परीक्षा के समय यीशु के साथ कोई भी शिष्य उपस्थित नहीं था, परन्तु, बाद में, यीशु ने चेलों के साथ तीन वर्षों से अधिक समय को बिताया। क्या यह सम्भावना अधिक नहीं है कि उसने स्वयं को उनके साथ सम्बन्धित किया होगा, जो उन तीन वर्षों के समयकाल में घटित हुआ था? इसी तरह से, यीशु अकेला था, जब उसने यूहन्ना 4 में कुएँ पर आई स्त्री से बात की, तौभी उनकी बातचीत पूरे वर्णन के साथ उद्धृत की गई है। सहज-ज्ञान आधारित व्याख्या यह है कि यीशु ने बाद में अपने शिष्यों को इसके बारे में बता दिया था। या कदाचित् यूहन्ना ने उस स्त्री से ही कहानी को प्राप्त किया होगा, इस सच्चाई को सामने रखते हुए उस स्त्री के मन परिवर्तन के बाद दो दिन तक शिष्य उसके शहर में ही रहे थे (यूहन्ना 4:40)।

उसके पुनरुत्थान के बाद, यीशु चालीस दिनों तक अपने शिष्यों को "परमेश्‍वर के राज्य की बातें" करते हुए दिखाई दिया (प्रेरितों 1:3)। उन चालीस दिनों में, यीशु के पास उन सभी बातों को अपने शिष्यों को बताने के लिए पर्याप्त अवसर रहा होगा, जब वे उसके आसपास नहीं थे। किसी भी स्थिति में, यीशु के जीवन की घटनाएँ जिन्हें परमेश्वर चाहता था कि हम जानें — जिसमें एकान्त में घटित होने वाली घटनाओं को भी सम्मिलित किया गया है — को लिपिबद्ध किया गया है। मुख्य कुँजी यह है कि परमेश्वर चाहता है कि जानें। या तो घटनाओं को बाद में किसी समय सीधे ही शिष्यों के ऊपर प्रगट कर दिया गया था, या तो यीशु के द्वारा या किसी और के द्वारा, या प्रेरितों ने पवित्र आत्मा से सीधे ही विवरणों को सीख लिया था जब उन्होंने परमेश्वर का वचन लिखा।

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कैसे यीशु के द्वारा कहीं गई और की गई बातों को सुसमाचारों में लिपिबद्ध किया गया है जबकि वह अकेला था?
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