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प्रश्न

क्या यीशु एक यहूदी था?

उत्तर


नासरत का रहने वाला यीशु वास्तव में एक यहूदी था या नहीं के प्रश्‍न के ऊपर चल रहे बड़े विवाद और असहमति को निर्धारित करने के लिए एक व्यक्ति को आज केवल इन्टरनेट में खोज करने की आवश्यकता है। इससे पहले कि हम इस प्रश्‍व का पर्याप्त रीति से उत्तर दें, हमें एक अन्य प्रश्‍न को सबसे पहले पूछना चाहिए : एक यहूदी कौन (या क्या) है? यहाँ तक कि इस प्रश्‍न के भी स्वयं में निहित विवादात्मक तत्व पाए जाते हैं, और इसका उत्तर इस बात पर निर्धारित है कि इसका उत्तर कौन दे रहा है। परन्तु एक परिभाषा जिसे यहूदी धर्म के सभी मुख्य सम्प्रदाय — परम्परावादी, रूढ़िवादी, और धर्म सुधारित — सम्भवत: सहमत होंगे, "एक यहूदी कोई भी ऐसा व्यक्ति है, जिनकी मां एक यहूदी थी या कोई भी ऐसा व्यक्ति जो यहूदी धर्म में धर्मान्तरण की औपचारिक प्रक्रिया से निकला हो।"

यद्यपि इब्रानी बाइबल विशेष रूप से कहीं भी यह नहीं कहती है कि माता आधारित वंशावली का उपयोग किया जाना चाहिए, तथापि आधुनिक रब्बी आधारित यहूदी धर्म विश्‍वास करता है कि तोराह में ऐसे असँख्य संदर्भ पाए जाते हैं जहाँ पर इसे समझा गया या इसके निहितार्थों को लागू किया गया है जैसे कि व्यवस्थाविवरण 7:1-5; लैव्यव्यवस्था 24:10; और एज्रा 10:2-3. इसके पश्चात् पवित्र शास्त्र में ऐसे अँसख्य उदाहरण पाए जाते हैं, जहाँ पर अन्यजाति यहूदी धर्म में धर्मान्तरित हुए हैं (उदाहरण के लिए मोआबी रूत; देखें रूत 1:16 जहाँ पर रूत धर्मान्तरित होने की अपनी इच्छा को प्रगट करती है) और उसके प्रत्येक अंश को यहूदी माना गया है जैसे कि एक जाति आधारित यहूदी को माना जाता है।

इसलिए, आइए दो प्रश्नों पर ध्यान दें : क्या यीशु एक जातीय यहूदी था? और क्या यीशु धार्मिक रीति से धर्म का पालन करने वाला एक यहूदी था?

क्या यीशु एक जातीय यहूदी था, या उसकी माता एक यहूदी थी? यीशु स्पष्ट रूप से स्वयं की पहचान अपने दिनों में यहूदियों के साथ, उसके घराने के लोगों और गोत्र और उनके धर्म (यद्यपि उनकी त्रुटियों को सुधारते हुए) करता है। परमेश्‍वर ने उसे उद्देश्य सहित यहूदा में भेजा था : "वह अपने घर [यहूदा] में आया और उसके अपनों [यहूदा] ने उसे ग्रहण नहीं किया। परन्तु जितनों [यहूदियों] ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्‍वर की सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्‍वास रखते हैं...(यूहन्ना 1:11-12 बी. एस. आई हिन्दी बाइबल), और उसने स्पष्टता के साथ ऐसे कहा, "तुम जिसे नहीं जानते, उसका भजन करते हो; और हम [यहूदी] जिसे जानते हैं उसका [यहूदी] भजन करते हैं; क्योंकि उद्धार यहूदियों में से है" (यूहन्ना 4:22)।

नए नियम के आरम्भ का ही वचन स्पष्टता के साथ यीशु का यहूदी जाति में से होने की घोषणा करता है। "अब्राहम की सन्तान, दाऊद की सन्तान, यीशु मसीह की वंशावली" (मत्ती 1:1)। यह इब्रानियों 7:15 जैसे संदर्भों से प्रमाणित है, "तो प्रगट है कि हमारा प्रभु यहूदा के गोत्र में से उदय हुआ है," अर्थात् यह कि यीशु यहूदा के गोत्र से प्रगट हुआ था, जिसमें से हम "यहूदी" नाम को प्राप्त करते हैं। और मरियम के बारे में क्या कहा जाए, जो यीशु की माता थी? लूका अध्याय 3 में दी हुई वंशावली में, हम स्पष्टता के साथ देखते हैं कि मरिमय दाऊद के वंश से आने वाली प्रत्यक्ष वंशज् है, जिसने यीशु को यहूदियों के सिंहासन पर विराजमान होने के वैधानिक अधिकार को भी बिना किसी सन्देह के स्थापित कर दिया कि यीशु जातीय रूप से भी यहूदी था।

क्या क्या यीशु धार्मिक रीति से धर्म का पालन करने वाला एक यहूदी था? यीशु के दोनों अभिवावकों ने "प्रभु की व्यवस्था के अनुसार सब कुछ पूरा किया था" (लूका 2:39)। उसकी चाची और चाचा, जकरयाह और इलीशिबा भी तोराह-की-व्यवस्था का पालन करने वाले यहूदी थे (लूका 1:6), इस तरह से हम देख सकते हैं कि कदाचित् पूरा परिवार ही अपने यहूदी विश्‍वास का पालन बहुत अधिक गम्भीरता के साथ कर रहा था।

पहाड़ी उपदेश में (मत्ती 5–7), यीशु निरन्तर तोराह और भविष्यद्वक्ताओं (मत्ती 5:17) यहाँ तक कि स्वर्ग के राज्य के अधिकार में भी (मत्ती 5:19-20) पुष्टि करता है। वह नियमित रूप से यहूदी आराधनालय में भाग लेता था (लूका 4:16), और उसकी शिक्षाओं को उसके दिनों के अन्य यहूदियों के द्वारा सम्मान दिया गया था (लूका 4:15)। उसने यरूशलेम के यहूदी मन्दिर में शिक्षा दी (लूका 21:37), और यदि वह एक यहूदी नहीं होता, तो उसका मन्दिर के उस भाग में जाना किसी भी रीति से अनुमति प्रदत्त नहीं होता (प्रेरितों के काम 21:28-30)।

यीशु ने साथ ही यहूदी धर्म में धार्मिक विश्‍वास का पालन करते समय बाहरी चिन्हों को प्रदर्शित किया। उसने अपने वस्त्रों पर टिज़ीटज़िट (विशेष पैबन्द) (लूका 8:44; मत्ती 14:36) को आज्ञाओं को स्मरण दिलाने के लिए पहना (गिनती 15:37-39) था। उसने फसह का पालन किया (यूहन्ना 2:13) और इसके लिए यरूशलेम गया था (व्यवस्थाविवरण 16:16) जो कि त्योहार के दिन के लिए की जाने वाली अति महत्वपूर्ण यहूदी तीर्थयात्रा थी। उसने सुक्कोत या मिलाप वाले झोपड़ियों के पर्व का पालन किया था (यूहन्ना 7:2, 10) और इसके लिए यरूशलेम गया था (यूहन्ना 7:14) जिसकी शर्त तोराह के द्वारा निर्धारित की गई थी। उसने साथ ही हानूक्काह, अर्थात् स्थापन के पर्व का पालन किया था (यूहन्ना 10:22) और कदाचित् रोश हाशहन्ना, अर्थात् तुरहियों के पर्व का भी पालन (यूहन्ना 5:1), यरूशलेम जाने के द्वारा दोनों ही अवसरों पर किया था, यद्यपि इसकी आज्ञा तोराह में नहीं दी गई थी। स्पष्ट है, कि यीशु ने स्वयं की पहचान एक यहूदी (यूहन्ना4:22) और यहूदियों के राजा (मरकुस 15:2) के रूप में की है। अपने जन्म से लेकर अपने अन्तिम फसह को मनाने तक (लूका 22:14-15), यीशु ने एक धार्मिक यहूदी के रूप में यहूदी धर्म का पालन करने वाले जीवन को व्यतीत किया।

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