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प्रश्न

यीशु की परीक्षाओं का क्या अर्थ और उद्देश्य था?

उत्तर


अपने बपतिस्मे के पश्चात्, यीशु "आत्मा के सीखाने से जंगल में फिरता रहा; और शैतान उसकी परीक्षा करता रहा" (लूका 4:1-2)। जंगल में ली गई तीन परीक्षाएँ परमेश्‍वर की ओर से यीशु की निष्ठा को हटाते हुए शैतान की ओर करने का एक प्रयास था। इसी तरह की परीक्षा मत्ती 16:21-23 में पाई जाती है, जहाँ पर यीशु ने पतरस के द्वारा, यीशु को क्रूस पर न जाने के लिए परीक्षा में डाला था, जिसके लिए वह ठहराया गया था। लूका 4:13 हमें बताता है कि जंगल में परीक्षा के उपरान्त, शैतान "उचित समय आने के लिए उसके पास से चला गया था" जो इस बात के संकेत देने का आभास देता है कि यीशु को आगे भी शैतान के द्वारा परीक्षा में डाला जाएगा, यद्यपि अतिरिक्त घटनाएँ लिपिबद्ध नहीं की गई हैं। महत्वपूर्ण बात यह है, कि विभिन्न परीक्षाओं के होने पर भी, वह बिना किसी पाप के रहा।

जंगल में यीशु की परीक्षा को होने देना इस कथन से स्पष्ट हो जाता है कि यह परमेश्‍वर का एक प्रयोजन था, "आत्मा के सीखाने के द्वारा जंगल में फिरता रहा।" एक उद्देश्य हमें इस बात के लिए आश्‍वस्त करना था कि हमारे पास एक महायाजक था, जो हमारी निर्बलताओं और कमजोरियों में हमारे साथ सहानुभूति रखने के लिए योग्य है (इब्रानियों 4:15) क्योंकि वह सभी बातों में परीक्षा में पड़ा जिनमें हम परीक्षा में पड़ते हैं। हमारे प्रभु का मानवीय स्वभाव उसे हमें हमारी कमजोरियों में हमारे साथ सहानुभूति रखने के लिए योग्य करता है, क्योंकि वह भी हमारी ही तरह सभी कमजोरियों के अधीन था। "क्योंकि जब उसने परीक्षा की दशा में दु:ख उठाया, तो वह उनकी भी सहायता कर सकता है जिनकी परीक्षा होती है" (इब्रानियों 2:18)। जिस यूनानी शब्द का अनुवाद "परीक्षा" शब्द के लिए यहाँ पर हुआ है उसका अर्थ "किसी की जाँच करने से" है। इसलिए, जब हमारी जाँच की जाती है और जीवन की परिस्थितियों के द्वारा हमारी जाँच होती है, तब हम आश्‍वस्त हो सकते हैं कि यीशु इसे समझता है और हमारे प्रति सहानुभूति रखता है, क्योंकि वह स्वयं इसी तरह की परीक्षाओं में होकर गया है।

यीशु की परीक्षा में तीन पद्धतियों का अनुसरण किया गया है जो सभी मनुष्यों के लिए सामान्य हैं। पहली परीक्षा शरीर की अभिलाषा के सम्बन्ध में है (मत्ती 4:3-4), जिसमें सभी तरह की भौतिक इच्छाएँ सम्मिलित हैं। हमारा प्रभु भूखा था और शैतान ने उसे पत्थरों को रोटी में परिवर्तित करने की परीक्षा में डाल दिया, परन्तु उसने व्यवस्थाविवरण 8:3 को उद्धृत करते हुए इसका उत्तर दे दिया। दूसरी परीक्षा जीविका के घमण्ड से सम्बन्धित है (मत्ती 4:5-7), और यहाँ पर शैतान ने उसके विरूद्ध पवित्र शास्त्र का उपयोग करने का प्रयास किया (भजन संहिता 91:11-12), परन्तु प्रभु ने एक बार फिर से इसके विरूद्ध पवित्र शास्त्र से ही उसे उत्तर यह कहते हुए दिया (व्यवस्थाविवरण 6:16), कि यह उसके लिए गलत होगा कि वह स्वयं अपनी सामर्थ्य का दुर्व्यवहार करे।

तीसरी परीक्षा आँखों की अभिलाषा के सम्बन्ध में थी (मत्ती 4:8-10), और यदि किसी तरह की शीघ्रता के साथ दु:खभोग और क्रूसीकरण को एक किनारे करते हुए छोटे मार्ग से मसीह होने के पद को प्राप्त किया जा सकता था, जिसके लिए वह वास्तव में आया था, तब यही वह मार्ग होगा। शैतान के पास पहले से ही संसार के राज्यों के ऊपर अपना नियंत्रण है (इफिसियों 2:2), परन्तु वह उसके प्रति निष्ठावान् होने के लिए मसीह को सब कुछ देने के लिए तैयार हो गया था। इस बात का विचार ही प्रभु के ईश्‍वरीय स्वभाव के लिए कंपकंपी का कारण बन जाता है, और इसलिए उसने शीघ्रता से उत्तर दिया, "तू प्रभु अपने परमेश्‍वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर" (मत्ती 4:10; व्यवस्थाविवरण 6:13)।

ऐसी बहुत सी परीक्षाएँ हैं जिनमें हम इसलिए गिर जाते हैं क्योंकि हमारा शरीर स्वाभाविक रीति से कमजोर है, परन्तु हमारे पास एक ऐसा परमेश्‍वर है जो हमें किसी भी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़ने देगा जो हमारी सामर्थ्य से परे हो; वह इसके लिए निकलने के मार्ग को उपलब्ध करेगा (1 कुरिन्थियों 10:13)। हम इसलिए विजयी हो सकते हैं और परीक्षा से छुटकारे के लिए प्रभु का धन्यवाद कर सकते हैं। यीशु का जंगल का अनुभव हमें इन सामान्य परीक्षाओं को देखने में सहायता प्रदान करता है जो हमें प्रभावशाली रीति से उसकी सेवा करने से दूर रखती हैं।

इसके अतिरिक्त, हम यीशु की प्रतिक्रिया से शिक्षा पाते हैं कि हमें कैसे पवित्र शास्त्र का उपयोग करते हुए — सटीकता के साथ प्रतिक्रिया व्यक्त करनी है। बुराई की शक्तियाँ हमारे पास असँख्य परीक्षाओं के साथ आती हैं, परन्तु उन सभी के केन्द्र में यही तीन बातें : आँखों की अभिलाषा, शरीर की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड पाई जाती हैं (1 यूहन्ना 2:16)। हम केवल अपने मनों और ह्रदयों को सच्चाई के साथ संतृप्त करते हुए परीक्षाओं को पहचान सकते और इनसे युद्ध कर सकते हैं। आत्मिक युद्ध में एक मसीही सैनिक के हथियार में केवल एक ही आक्रामण करने वाला हथियार सम्मिलित है, और यह आत्मा की तलवार जो परमेश्‍वर का वचन है (इफिसियों 6:17)। बाइबल को घनिष्ठता से जानने से हम हमारे हाथों में तलवार को दृढ़ता से पकड़े हुए हैं और यह हमें परीक्षाओं के ऊपर विजयी बनाने के लिए योग्य करेगा।

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