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प्रश्न

आज हमारे जीवनों में पवित्र आत्मा की क्या भूमिका है?

उत्तर


परमेश्‍वर के द्वारा मनुष्य को दिए हुए सभी वरदानों में से, पवित्र आत्मा की उपस्थिति से महान् कोई भी नहीं है। आत्मा के बहुत से कार्य, भूमिकाएँ और गतिविधियाँ हैं। प्रथम, वह प्रत्येक स्थान पर सभी लोगों के हृदय में कार्य करता है। यीशु ने उसके शिष्यों से कहा था कि वह अपने "आत्मा को संसार को पाप और धार्मिकता और न्याय के विषय में निरूत्तर करने" के लिए भेजेगा (यूहन्ना 16:7-11)। प्रत्येक व्यक्ति के पास "परमेश्‍वर का दिया हुआ विवेक" है, चाहे हम इसे स्वीकार करें या न करें। आत्मा परमेश्‍वर के सत्य को लोगों के मनों के ऊपर उन्हें निरूत्तर करने के लिए उचित और पर्याप्त तर्क के साथ लागू करता है कि वे पापी होना स्वीकार कर लें। इस निरूत्तर होने के प्रति प्रतिक्रिया करना मनुष्य के लिए उद्धार ले आता है।

एक बार जब हम बच जाते और परमेश्‍वर से सम्बन्धित हो जाते हैं, तब आत्मा सदैव के लिए हमारे हृदय में वास करने के लिए अपने निवासस्थान को बनाते हुए, इसे उसकी सन्तान होने के नाते इस पुष्टि, प्रमाणिकता और हमारे शाश्वतकालीन स्थिति के निश्चित प्रतिज्ञा के साथ मुहरबन्द कर देता है। यीशु ने कहा था कि वह अपना आत्मा हमारे लिए एक सहायक, सांत्वना और मार्गदर्शन देने वाले के रूप में भेजेगा। "मैं पिता से बिनती करूँगा, और वह तुम्हें एक और सहायक देगा कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे" (यूहन्ना 14:16)। जिस यूनानी शब्द "सलाहकार" का यहाँ अनुवाद हुआ है उसका अर्थ "एक साथ रहने वाले व्यक्ति" का है और इसमें यह विचार पाया जाता है कि यह एक ऐसा व्यक्ति है जो उत्साह और उपदेश देता है। पवित्र आत्मा विश्‍वासियों के हृदयों में सदैव वास करने के लिए इसे अपने अधीन कर लेता है (रोमियों 8:9; 1 कुरिन्थियों 6:19-20, 12:13)। यीशु ने हमें उसकी अनुपस्थिति में उसे "क्षतिपूर्ति" के रूप में दिया है, ताकि वह उन कार्यों को करें जिन्हें उसे करना था यदि वह हमारे साथ व्यक्तिगत् रूप से साथ बना रहता।

इन कार्यों में से एक सत्य को प्रकाशित करना भी है। आत्मा की हमारे भीतर उपस्थिति हमें परमेश्‍वर के वचन को समझने और उसका अर्थ बताने के लिये सक्षम करना भी सम्मिलित है। यीशु ने उसके शिष्यों से कहा था कि "जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा" (यूहन्ना 16:13)। वह हमारे मनों में परमेश्‍वर की सारी मनसा को प्रकाशित करता है क्योंकि इसका सम्बन्ध आराधना, धर्मसिद्धान्त और मसीही जीवन यापन से है। वही अन्तिम मार्गदर्शक, है जो हम से पहले आगे जाते हुए, मार्ग की अगुवाई करते हुए, सभी अवरोधों को हटाते हुए, समझ को खोलते हुए, और सभी बातों को स्पष्ट और साफ बनाते हुए हमारे आगे आगे चलता है। वह हमें उस मार्ग में ले चलता है जिसमें हमें सभी आत्मिक बातों को करने के लिए जाना चाहिए। इस तरह के मार्गदर्शन के बिना हम में त्रुटियों के विकल्प होने की ज्यादा सम्भावना है। सत्य के जिस महत्वपूर्ण भाग को वह हम पर प्रकाशित करता है वह यह है कि यीशु वही है जिसने यह कहा था कि वह है (यूहन्ना 15:26; 1 कुरिन्थियों 12:3)। आत्मा हमें मसीह के ईश्वरत्व और देहधारण, उसके मसीह होने, उसके दु:ख और मृत्यु, उसके पुनरूत्थान और स्वर्गारोहण, उसके परमेश्‍वर के दाहिने हाथ जा बैठ कर महिमा में उच्च होने, और सभी के लिए उसके न्यायी की भूमिका के प्रति निरूत्तर कर देता है। वह सभी बातों में मसीह को सारी महिमा देता है (यूहन्ना 16:14)।

पवित्र आत्मा की एक और भूमिका यह है कि वह वरदान-को-देने वाला दाता है। पहला कुरिन्थियों 12 उन आत्मिक वरदानों का वर्णन करता है जिन्हें विश्‍वासियों को इसलिये दिए जाते हैं कि हम मसीह की देह के रूप में इस पृथ्वी पर कार्य करें। इन सभी वरदानों, दोनों अर्थात् बड़े और छोटे, आत्मा ही के द्वारा दिए जाते हैं ताकि हम इस संसार में उसके राजदूत होते हुए, उसके अनुग्रह को दिखाएँ और उसकी महिमा करें।

आत्मा साथ ही हमारे जीवनों में फल-उत्पन्न करने वाले के रूप में कार्य करता है। जब वह हमारे भीतर वास करता है तब वह हमारे जीवनों में उसके फल - प्रेम, आनन्द, शान्ति, धैर्य, कृपा, भलाई, विश्‍वास, नम्रता और संयम को उत्पन्न करने के कार्य को आरम्भ कर देता है (गलातियों 5:22-23)। यह हमारे शरीर के कार्य नहीं हैं, जो इस तरह के फल को उत्पन्न करने के योग्य नहीं हैं, अपितु यह हमारे जीवनों में आत्मा की उपस्थिति है जो इन्हें उत्पन्न करती है।

यह ज्ञान कि परमेश्‍वर के पवित्र आत्मा ने हमारे जीवनों के भीतर अपने निवासस्थान को बना लिया है, यह कि वह सभी तरह के आश्चर्यजनक कार्यों को प्रदर्शित करता है, यह कि वह सदैव हमारे भीतर वास करता है, और यह कि वह न तो हमें त्यागेगा और न ही हमें छोड़ेगा, हमारे लिए बड़े आनन्द और सांत्वना का कारण हैं। इस बहुमूल्य वरदान - पवित्र आत्मा और हमारे जीवनों में उसके कार्यों के लिए हे परमेश्‍वर तेरा धन्यवाद!

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