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प्रश्न

क्या बाइबल विश्‍वसनीय है?

उत्तर


उसी मापदण्ड का उपयोग करके जिससे हम अन्य ऐतिहासिक कार्यों का न्याय करते हैं, हम पाते हैं, न केवल बाइबल विश्‍वसनीय है, अपितु यह किसी अन्य तुलनात्मक लेखनकार्य से अधिक विश्‍वसनीय है। विश्‍वसनीयता सच्चाई और सटीक प्रतिलिपि के होने का प्रश्न है। जो ऐतिहासिक और तथ्यात्मक रूप से सही हैं और जिन्हें समय के साथ पूरी निष्ठा के साथ सुरक्षित किया गया है, उन्हें विश्‍वसनीय माना जाएगा। ऐतिहासिक सत्यापन के उच्च स्तर और हस्तांतरण में सर्वोत्तम रीति से विश्‍वास का होना यह निर्धारित करना आसान बनाता है कि एक प्राचीन कार्य विश्‍वास के योग्य है या नहीं। उन मापदण्डों के उपयोग से हम बाइबल को भरोसेमन्द मान सकते हैं।

जैसा कि किसी भी ऐतिहासिक कार्य के साथ सच होता है, बाइबल के प्रत्येक विवरण की पुष्टि नहीं की जा सकती है। बाइबल को ऐसे ही अविश्‍वसनीय नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि इसमें ऐसे भाग पाए जाते हैं, जिनकी पुष्टि नहीं की जा सकती है या जिनकी अभी तक पुष्टि नहीं हुई है। यह उचित है कि यह उनके सटीक होने की अपेक्षा करें जब कभी भी जहाँ कहीं से इसकी जाँच की जाए। यह विश्‍वसनीयता का प्राथमिक परीक्षण है और यहाँ बाइबल का वैभवशाली लिपिबद्ध वृतान्त है। न केवल इसके कई ऐतिहासिक विवरणों की पुष्टि हुई है, अपितु कुछ अंशों की भी जिन पर किसी समय सन्देह था, जिन्हें बाद में पुरातत्व विज्ञान के द्वारा सत्यापित किया गया है।

उदाहरण के लिए, 1920 के दशक में की गई पुरातात्विक खोजों ने उत्पत्ति 11 में वर्णित ऊर जैसे शहरों के अस्तित्व में होने की पुष्टि की है, जिन पर कुछ सन्देहवादियों को सन्देह था कि वे कैसे इतनी जल्दी अस्तित्व में थे। एक मिस्री कब्र में खोजी गई नक्काशी एक राजप्रतिनिधि के राजकीय अभिषेक की स्थापना को दर्शाती है, जो यूसुफ (उत्पत्ति 39) से जुड़े बाइबल के अनुष्ठान के वर्णन से पूर्ण रीति से अनुरूप है। 2300 ईसा पूर्व की तिथि से मिलने वाली मिट्टी की पट्टियाएँ सीरिया में पुराने नियम की कहानियों, शब्दावली, और भूगोल का समर्थन करने के लिए दृढ़ रही हैं। सन्देहवादियों ने हित्तियों के अस्तित्व पर तब तक सन्देह किया था (उत्पत्ति 15:20; 23:10; 49:29), जब तक कि एक हित्ती शहर अपने पूरे दस्तावेज के साथ प्राप्त नहीं हो गया, जो तुर्की में पाया गया है। पुरातात्विक खोज द्वारा समर्थित पुराने नियमों के कई तथ्यों की सँख्या दर्जनों हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पुराने या नए नियमों में प्रस्तुत किसी भी तथ्य को झूठा नहीं दिखाया गया है। पवित्रशास्त्र में दिए गए अन्य कथनों में हमारे विश्‍वास के लिए यह ऐतिहासिक विश्‍वसनीयता महत्वपूर्ण है।

यहाँ तक कि उत्पत्ति की "आश्‍चर्यजनक" घटनाओं के भी प्रमाणिक आधार है, जो हम आज उन्हें स्वीकार करने के लिए आग्रह कर सकते हैं। प्राचीन बेबीलोन का वृतान्त बाइबल के गुम्मट के बाइबल के वृतान्त के अनुसार, भाषा में पड़ी हुई गड़बड़ी का वर्णन करता है (उत्पत्ति 11:1-9)। यही दोनों लिपिबद्ध वृतान्त संसार में आई जल प्रलय का वर्णन करते हैं, जो संसार की सभी संस्कृतियों में वास्तव में शब्दिक रूप से सैकड़ों तरह से पाई जाने वाली एक घटना है। ऐसे स्थान जहाँ सदोम और अमोरा (उत्पत्ति 19) किसी समय विद्यमान थे, आग लगने और हिंसक रीति से विनाश होने के प्रमाण को प्रदर्शित करते हुए पाए गए हैं। यहाँ तक कि मिस्र के ऊपर आई विपत्तियाँ और परिणाम स्वरूप निर्गमन (निर्गमन 12:40-41) के प्रति पुरातात्विक समर्थन पाए जाते है।

यही प्रचलन नए नियम में भी चलता है, जहाँ इतिहासकारों और पुरातत्वविदों द्वारा विभिन्न शहरों, राजनीतिक अधिकारियों और घटनाओं के नामों की बार-बार पुष्टि की गई है। सुसमाचार के लेखक लूका और प्रेरितों के काम की पुस्तक को विस्तार और सटीक रीति से लिपिबद्ध वृतान्त देने के ऊपर ध्यान देने के लिए प्रथम श्रेणी के इतिहासकार के रूप में वर्णित किया गया है। पुराने और नए नियमों दोनों लेखों में, बाइबल विश्‍वसनीय प्रमाणित हुई है, कहीं से भी इसकी जाँच की जा सकती है।

बाइबल की विश्‍वसनीयता में सटीक प्रतिलिपि का होना भी एक महत्वपूर्ण कारक है। नए नियमों के लेखों को उनके द्वारा वर्णित घटनाओं के कुछ दशकों के भीतर ही लिख दिया गया था, जो कि वास्तविक इतिहास से आगे निकलते हुए इसे किंवदन्ती या मिथक कथा कहने के लिए बहुत शीघ्रता वाली बात है। वास्तव में, 1 कुरिन्थियों 15:3-8 में पौलुस के वर्णन के अनुसार, यीशु के क्रूस पर चढ़ाए जाने के कुछ ही वर्षों के बाद सुसमाचार का बुनियादी ढांचा विश्‍वास कथन के लिखे जाने में सारांशित किया जा सकता है। इतिहासकारों की पाण्डुलिपियों की एक बड़ी सँख्या में प्रभावी रीति से पहुँच है, जो यह प्रमाणित करते हैं कि नया नियम की भरोसेमन्द और शीघ्रता से नकल की गई और वितरित किया गया था। यह पर्याप्त आत्मविश्‍वास देता है कि जो आज हम पढ़ते हैं, वह मूल लेख का सही ढंग से प्रतिनिधित्व करता है।

पुराना नियम, साथ ही, विश्‍वसनीय रूप से हस्तान्तरित होने के सभी प्रमाणों को भी दिखाता है। जब 1940 के दशक में मृत सागर कुण्डल पत्रों की खोज की गई थी, तब वे किसी भी अन्य उपलब्ध पाण्डुलिपियों की तुलना में 800 वर्ष पुराने थे। पहले और बाद की पाण्डुलिपियों की तुलना में हस्तान्तरण करने के लिए एक सावधानीपूर्वक दृष्टिकोण दिखाया गया है, जो एक बार फिर से हमारे आत्मविश्‍वास के साथ जुड़ जाता है कि आज हमारे पास जो मूल पाठ उपलब्ध हैं, यह वही हैं।

ये सभी कारक बाइबल को विश्‍वसनीय मानने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए सभी कारणों को बताते हैं। साथ ही, उन अन्य ग्रन्थों में उन कारकों की जाँच करना महत्वपूर्ण है, जो हम अपने इतिहास की पुस्तकों को लिखने के लिए उपयोग करते हैं। बाइबल में अधिक अनुभवजन्य समर्थन पाया जाता है, मूल लेखों और बची हुई प्रतियों के बीच एक छोटा सा समय और किसी अन्य प्राचीन कार्य की तुलना में स्रोत पाण्डुलिपियों की एक बड़ी सँख्या पाई जाती है।

उदाहरण के लिए, जूलियस कैसर के लेखन कार्यों की दस प्रतियाँ पाई गई हैं, जो उसके द्वारा लिखने के 1,000 वर्षों के पश्‍चात् अपने सबसे पहले के रूप में पाई गई हैं, के बारे में किसी भी तरह से नहीं पता चलता है कि यह प्रतियाँ कितनी अच्छी तरह से मूल रूप का प्रतिनिधित्व करती हैं। इतिहासकार हेरोडोट्स के कार्यों की आठ प्रतियाँ हैं, जो उसके द्वारा लिखने के 1,000 वर्षों के पश्‍चात् अपने सबसे पहले के रूप में पाई गई हैं। पुरातत्वविदों ने होमर के कार्यों की 643 पाण्डुलिपियों की प्रतियाँ को पाया है, जो हमें मूल पाठ में 95 प्रतिशत विश्‍वास की अनुमति देती हैं।

जहाँ तक नए नियम की बात है, वर्तमान में 5,000 से अधिक पाण्डुलिपियाँ हैं, जिसमें सबसे प्राचीन प्रतिलिपि 200 से 300 वर्षों के समय के किसी समय की है और कुछ तो 100 वर्षों से कम की प्रतियाँ हैं। यह मूल पाठ की विषय वस्तु में 99 प्रतिशत से अधिक विश्‍वास किए जाने को प्रदान करती है।

संक्षेप में, हमारे पास न केवल बाइबल की विश्‍वसनीयता का दावा करने के लिए उद्देश्य हैं, अपितु हम इसे तब तक अविश्‍वनीय नहीं पुकार सकते जब तक हम लगभग जाने हुए प्राचीन इतिहास को एक किनारे नहीं फेंक देते हैं। यदि पवित्रशास्त्र विश्‍वासयोग्यता के लिए परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं होता, तो उस युग का कोई भी लिपिबद्ध वृतान्त नहीं हो सकता है। बाइबल की विश्‍वसनीयता इसकी ऐतिहासिक सटीकता और इसके सटीक रीति से हस्तान्तरण होने में अर्थात् दोनों में ही प्रमाणित हुई है।

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