प्रश्न
क्यों बहुत सारे मसीही विश्वासियों के पास निरन्तर बाइबिलीय वैश्विक दृष्टिकोण नहीं होता हैं?
उत्तर
बाइबल के दृष्टिकोण से एक बाइबिलीय वैश्विक दृष्टिकोण एक व्यक्ति की संसार के प्रति पूर्ण धारणा है। यह जीवन के अर्थ, परमेश्वर के स्वभाव, सत्य का स्रोत, और अन्य आधारभूत धारणाओं के बारे में एक मसीही विश्वासी की मूल विश्वास पद्धति है। तौभी कई मसीहियों के वैश्विक दृष्टिकोण बाइबल के आधार पर संगत नहीं होते है। वे कुछ विषय तक बाइबल के दृष्टिकोण से पहुँच सकते हैं, परन्तु प्रत्येक विषय के ऊपर नहीं।
कई सम्भावित कारण हैं कि क्यों कुछ मसीही निरन्तर बाइबिलीय वैश्विक दृष्टिकोण के प्रति विफल रहते हैं:
1) जो कुछ बाइबल कहती है, वे उसके प्रति अनजान हैं। वे वचन को नहीं जानते हैं। यदि किसी को यह नहीं पता कि बाइबल मानव जीवन की पवित्रता के बारे में क्या कहती है, तो उदाहरण के लिए, इस विषय पर बाइबल के दृष्टिकोण को बनाना कठिन होगा। क्योंकि अज्ञानी लोगों के लिए, शिक्षा ही कुँजी है।
2) कुछ विषयों के ऊपर बाइबल क्या कहती है, उन्होंने अस्वीकार कर दिया है। यदि विश्वास अंगीकार करता हुआ एक मसीही विश्वासी विश्वास ही नहीं करता कि बाइबल क्या कहती है, तो उसके लिए एक प्रामाणिक बाइबिलीय वैश्विक दृष्टिकोण का होना असम्भव होगा। क्योंकि विरोधाभासी लोगों के लिए, पश्चाताप ही कुँजी है।
3) वे परमेश्वर क्या सोचते हैं, के स्थान पर संसार क्या सोचता है, के बारे में अधिक चिंतित हैं। "मनुष्य का भय खाना फन्दा बन जाता है" (नीतिवचन 2 9:25)। एक मसीही विश्वासी जो बाइबल आधारित दृष्टिकोण से संसार को देखता है, पहचान जाता है कि वह इस संसार का नहीं है। यीशु ने कहा, "यदि तुम संसार के होते, तो संसार अपनों से प्रेम रखता; परन्तु इस कारण कि तुम संसार के नहीं, वरन् मैं ने तुम्हें संसार में से चुन लिया है, इसी लिये संसार तुम से बैर रखता है" (यूहन्ना 15:19; और यूहन्ना 17:14 को भी देखें)। जब एक मसीही विश्वासी संसार के सोच के साथ समझौता करना आरम्भ कर देता है, तो वह परमेश्वर के दृष्टिकोण के ऊपर से अपने ध्यान केन्द्र को खो देता है। क्योंकि डरपोक लोगों के लिए, साहस ही कुँजी है।
4) वे मसीह के प्रति अपने समर्पण में कमजोर हैं। लौदीकिया की कलीसिया की तरह, वे "न तो ठण्डे और न ही गर्म हैं" (प्रकाशितवाक्य 3:15), जो मसीह के लिए खड़े होने के लिए इच्छुक नहीं थे। क्योंकि कमजोरों के लिए, समर्पण ही कुँजी है।
5) वे संसार के झूठ से प्रभावित हैं। आदम और हव्वा के समय से, शैतान ने धोखा देने और भ्रमित करने की अपनी क्षमता का उपयोग कर रहा है (उत्पत्ति 3:1-7; प्रकाशितवाक्य 12:9)। शैतान के शस्त्रागार में एक शक्तिशाली हथियार यह विचार है कि बाइबल मिथकों से भरी हुई एक पुस्तक मात्र है, कि यह त्रुटियों से भरी हुई है और इस पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए। शैतान लोगों को यह समझाने की इच्छा रखता है कि बाइबल अब प्रासंगिक नहीं है, कि उसके नियम और सिद्धान्त अप्रचलित हैं। कलीसिया में कई विश्वासी इसी तरह की सोच से प्रभावित हुए हैं। क्योंकि धोखा पाए हुओं के लिए, समझ ही कुँजी है।
6) वे अपनी परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं और परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के ऊपर सन्देह करते हैं। मत्ती 14 में, जब पतरस पानी के ऊपर चलने के लिए नाव से नीचे उतरा, तो वह एक बाइबिलीय वैश्विक दृष्टिकोण का प्रदर्शन कर रहा था: यीशु सारी सामर्थ्य का स्रोत है। यद्यपि, जब पतरस ने तूफान-से लहरों की उछाल वाले समुद्र पर ध्यान केन्द्रित किया, तो उसका वैश्विक दृष्टिकोण परिवर्तित हो गया: कदाचित् लहरें यीशु की तुलना में अधिक सामर्थी थीं। क्योंकि सन्देह करने वालों के लिए, विश्वास ही कुँजी है।
निरन्तर बाइबिलीय वैश्विक दृष्टिकोण के होने के लिए हमें बाइबल में ही वापस जाना चाहिए और परमेश्वर के द्वारा हमारे साथ की गई प्रतिज्ञाओं को थामना होगा, क्योंकि संसार हमें कुछ भी प्रदान नहीं करता है (लूका 9:25; यूहन्ना 12:25; मत्ती 6:19)।
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क्यों बहुत सारे मसीही विश्वासियों के पास निरन्तर बाइबिलीय वैश्विक दृष्टिकोण नहीं होता हैं?