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प्रश्न

मसीही नीतिशास्त्र क्या है?

उत्तर


मसीही नीतिशास्त्र को कुलुस्सियों 3:1-6 के शब्दों में अच्छी रीति से सारांशित किया जा सकता है: "अत: जब तुम मसीह के साथ जिलाए गए, तो स्वर्गीय वस्तुओं की खोज में रहो, जहाँ मसीह विद्यमान है और परमेश्‍वर के दाहिनी ओर बैठा है। पृथ्वी पर की नहीं परन्तु स्वर्गीय वस्तुओं पर ध्यान लगाओ। क्योंकि तुम तो मर गए, और तुम्हारा जीवन मसीह के साथ परमेश्‍वर में छिपा हुआ है। जब मसीह जो हमारा जीवन है, प्रगट होगा, तब तुम भी उसके साथ महिमा सहित प्रगट किए जाओगे। इसलिये अपने उन अंगो को मार डालो, जो पृथ्वी पर हैं, अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, दुष्कामना, बुरी लालसा और लोभ को जो मूर्ति पूजा के बराबर है। इन ही के कारण परमेश्‍वर का प्रकोप आज्ञा न माननेवालों पर पड़ता है।"

जबकि यह "करो" या "न करो" की एक सूची से कहीं अधिक बढ़कर, जीवन को कैसे व्यतीत किया जाए, के ऊपर बाइबल विस्तार सहित निर्देशों को देती है। यह जानने के लिए एक मसीही जीवन को कैसे व्यतीत किया जाता है, बाइबल ही हमारे लिए पर्याप्त है। तथापि, बाइबल हमारे प्रतिदिन के जीवन में आने वाली प्रत्येक परिस्थिति को स्पष्ट रीति से उत्तर नहीं देती है। फिर यह कैसे उन सभी नैतिक दुविधाओं जिन का सामना हम करते हैं, के लिए पर्याप्त है? यही वह स्थान हैं, जहाँ पर मसीही नीतिशास्त्र अपने स्थान को लेती है।

विज्ञान नैतिकता को "नैतिक सिद्धान्तों की एक सूची, नैतिकता के अध्ययन" के रूप में परिभाषित करती है। इसलिए, मसीही नीतिशास्त्र मसीही विश्‍वास से आने वाले ऐसे सिद्धान्त हैं, जिनके ऊपर हम कार्यान्वित होते हैं। जबकि परमेश्‍वर के वचन हमारे जीवन में सामना की जाने वाली प्रत्येक परिस्थिति का उत्तर न देता, तथापि, ये सिद्धान्त उन मापदण्डों को देते हैं, जिन पर हमारा व्यवहार उन परिस्थितियों में आधारित होना चाहिए जहाँ पर कोई भी स्पष्ट निर्देश नहीं पाया जाता है।

उदहारण के लिए, बाइबल अवैध तरीके से नशा करने के बारे में कुछ भी स्पष्टता से नहीं कहती है, तथापि उन सिद्धान्तों के ऊपर आधारित होकर जिन्हें हम पवित्रशास्त्र में सीखते हैं, हम जान सकते हैं कि यह गलत है। क्योंकि एक बात, बाइबल हमें यह कहती है कि शरीर पवित्र आत्मा का मन्दिर है, जिसके साथ हम हमारे परमेश्‍वर का सम्मान करते हैं (1 कुरिन्थियों 6:19-20)। यह जानते हुए नशा हमारे शरीरों के भिन्न अंगों को — नुकसान पहुँचाता है — हम जानते हैं कि उनके उपयोग के द्वारा हम पवित्र आत्मा के मन्दिर का नाश कर रहे हैं। यह निश्चित रूप से परमेश्‍वर का सम्मान करना नहीं हुआ। बाइबल साथ ही यह कहती है कि हमें उन अधिकारियों का अनुसरण करना चाहिए, जिन्हें परमेश्‍वर ने अधिकार के स्थान पर रखा है (रोमियों 13:1)। नशा के अवैध स्वभाव के कारण, उनका उपयोग करने के द्वारा हम स्वयं को अधिकारियों के अधीन नहीं कर रहे हैं अपितु उनके विरूद्ध विद्रोह कर रहे हैं। क्या इसका यह अर्थ है, कि यदि नशीले पदार्थों को वैध कर दिया जाएगा तो यह हमारे लिए ठीक होगा? प्रथम सिद्धान्त का उल्लंघन किये बिना नहीं।

उन सिद्धान्तों को जिन्हें हम पवित्रशास्त्र में पाते हैं, उपयोग करने के द्वारा, मसीही विश्‍वासी किसी भी परिस्थिति में जीवन गति की नैतिकता को निर्धारित कर सकते हैं। कुछ घटनाओं में तो यह बहुत ही सरल होगा, जैसे कि उन नियमों में जिन्हें हम कुलुस्सियों अध्याय 3 में जीवन यापन के लिए पाते हैं। तथापि, अन्य घटनाओं में, हमें थोड़ा सा गहरे में उतरने की आवश्यकता है। इसके लिए सबसे उत्तम तरीका परमेश्‍वर के वचन के साथ प्रार्थना करना है। पवित्र आत्मा प्रत्येक विश्‍वासी में वास करता है, और उसके शिक्षण का एक हिस्सा यह सीखना है, कि हम कैसे जीवन को यापन करें: "परन्तु सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हे सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैंने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण दिलाएगा" (यूहन्ना 14:26)। "परन्तु तुम्हारा वह अभिषेक जो उसकी ओर से किया गया, तुम में बना रहता है; और तुम्हें इसका प्रयोजन नहीं कि कोई तुम्हें सिखाए, वरन् जैसे वह अभिषेक जो उसकी ओर से किया गया तुम्हें सब बातें सिखाता है, और वह सच्चा और झूठा नहीं — और जैसा उसने तुम्हें सिखाया है, वैसे ही तुम उसमें बने रहते हो" (1 यूहन्ना 2:27)। इस कारण, जह हम पवित्रशास्त्र के साथ प्रार्थना करते हैं, तब आत्मा हमारा मार्गदर्शन करेगा और हमें शिक्षा देगा। वह हमें उन सिद्धान्तों की दिखाएगा जिन के द्वारा हम किसी भी परिस्थिति में खड़ा हो सकते हैं।

जबकि परमेश्‍वर का वचन उस प्रत्येक परिस्थिति का उत्तर नहीं देता है, जिन्हें हम हमारे प्रतिदिन के जीवन में सामना करते हैं, तथापि यह एक मसीही जीवन को यापन करने के लिए पूर्ण-रीति से पर्याप्त है। क्योंकि बहुत से बातों के लिए, हम केवल यह देख सकते हैं कि बाइबल क्या कहती है, और उसके ऊपर आधारित हो जीवन की उचित गति को व्यतीत कर सकते हैं। ऐसे नैतिक प्रश्न जिनका निपटारा पवित्रशास्त्र स्पष्ट निर्देशों के साथ नहीं करता है, हमें उन सिद्धान्तों को देखना चाहिए, जिन्हें हम हमारी परिस्थिति में लागू कर सकते हैं। हमें इनके लिए वचन के साथ प्रार्थना करनी चाहिए और स्वयं को उसके आत्मा के प्रति खोल देना चाहिए। आत्मा हमें शिक्षा देगा और उन सिद्धान्तों को प्राप्त करने के लिए बाइबल से मार्गदर्शन देगा, जिनके ऊपर हमें आधारित होना है, ताकि हम ऐसे जीवन व्यतीत कर सकें जैसे कि एक मसीही विश्‍वासी को करना चाहिए।

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