प्रश्न
मसीही जीवन किस के जैसा होना चाहिए?
उत्तर
मसीही जीवन को विश्वास से जीने वाला जीवन माना जाता है। यह विश्वास से होता है कि हम मसीही जीवन में प्रवेश करते हैं, और यह विश्वास से होता है कि हम इसे जी पाते हैं। जब हम पाप की क्षमा के लिए मसीह के पास आकर मसीही जीवन का आरम्भ करते हैं, तो हम समझते हैं कि जो कुछ हम चाहते हैं, उसे हम विश्वास को छोड़ किसी अन्य माध्यम से प्राप्त नहीं कर सकते हैं। हम स्वर्ग में पहुँचने के लिए अपने पथों को नहीं बना सकते हैं, क्योंकि हम जो कुछ भी करें वह इसके लिए पर्याप्त नहीं होगा। जो लोग ऐसा विश्वास करते हैं कि वे नियमों और रीति रिवाजों अर्थात् — क्या करना है और क्या नहीं करना है — का पालन करने के द्वारा अनन्त जीवन को प्राप्त कर सकते हैं, इस बात का इनकार करते हैं कि बाइबल स्पष्ट रूप से क्या सिखाती है। "पर यह बात प्रगट है कि व्यवस्था के द्वारा परमेश्वर के यहाँ कोई धर्मी नहीं ठहरता, 'क्योंकि धर्मी जन विश्वास से जीवित रहेगा''' (गलतियों 3:11)। यीशु के दिनों के फरीसियों ने मसीह का इन्कार कर दिया था, क्योंकि उसने उन्हें इस सच्चाई को भी बताया था, कि उनके सारे धार्मिक कार्य व्यर्थ थे और केवल मसीह में उनके द्वारा किया गया विश्वास ही उन्हें बचाएगा।
रोमियों 1 में, पौलुस कहता है कि यीशु मसीह का सुसमाचार वह सामर्थ्य है, जो हमें बचाती है, सुसमाचार शुभ सन्देश है, जिससे कि जो लोग उस पर विश्वास करते हैं, वे अनन्त जीवन को प्राप्त करेंगे। जब हम इस सुसमाचार में विश्वास के द्वारा मसीही जीवन में प्रवेश करते हैं, तो हम देखते हैं कि हमारा विश्वास बढ़ता है, क्योंकि हम परमेश्वर के बारे में और अधिक जानते हैं, जिसने हमें बचाया है। मसीह का सुसमाचार वास्तव में हमारे लिए परमेश्वर को प्रकट करता है, जब हम प्रतिदिन उसकी निकटता में बढ़ने के लिए आगे बढ़ते हैं। रोमियों 1:17 कहता है, "क्योंकि उसमें परमेश्वर की धार्मिकता विश्वास से और विश्वास के लिये प्रगट होती है; जैसा लिखा है, 'विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा।'" इस कारण मसीही जीवन का एक भाग वचन का अध्ययन और पठ्न परिश्रम के साथ करने, समझ और ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करने और पवित्र आत्मा के माध्यम से परमेश्वर के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध को बनाने का है।
मसीही जीवन साथ ही विश्वास के द्वारा जीवन जीने के लिए स्वयं को मृत्यु के लिए दे देना माना जाता है। पौलुस ने गलातियों के विश्वासियों को बताया था कि, "मैं मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया हूँ, अब मैं जीवित न रहा, पर मसीह मुझ में जीवित है; और मैं शरीर में अब जो जीवित हूँ तो केवल उस विश्वास से जीवित हूँ जो परमेश्वर के पुत्र पर है, जिस ने मुझ से प्रेम किया और मेरे लिये अपने आप को दे दिया" (गलातियों 2:20)। मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया जाने का अर्थ यह है कि हमारे पुराने स्वभाव को क्रूस पर चढ़ा दिया गया है और इसके स्थान पर एक नए स्वभाव को लगा दिया गया है, जो कि मसीह का है (2 कुरिन्थियों 5:17)। वह जिसने हम से प्रेम किया और जो हमारे लिए मर गया, और जो अब हमारे भीतर वास करता है, और इस जीवन जिस में हम रहते हैं, इसे उस के ऊपर विश्वास करते हुए रहते हैं। इसका अर्थ है कि हम अपनी इच्छाओं, महत्वाकांक्षाओं और प्राप्त होने वाली महिमाओं को त्यागते और उन्हें मसीह के साथ परिवर्तित कर लेते हैं। हम केवल विश्वास के माध्यम से उसकी सामर्थ्य से ही ऐसा कर सकते हैं, जिसे वह हमें उसके अनुग्रह से देता है। मसीही जीवन का एक भाग इसी अन्त की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करना है।
मसीही जीवन को भी अन्त तक दृढ़ता से बने रहना है। इब्रानियों 10:38-39 पुराने नियम में भविष्यद्वक्ता हबक्कूक से उद्धृत करते हुए इस विषय को सम्बोधित करता है: "पर मेरा धर्मी जन विश्वास से जीवित रहेगा, और यदि वह पीछे हट जाए तो मेरा मन उस से प्रसन्न न होगा।" परमेश्वर किसी भी ऐसे व्यक्ति से प्रसन्न नहीं होता है, जो उसके साथ समर्पण करने के पश्चात् "वापस लौट" जाता है, परन्तु विश्वास से जीने वाले लोग कभी वापस नहीं जाएंगे, क्योंकि उन्हें पवित्र आत्मा के द्वारा बनाए रखा जाता है, जो हमें आश्वासन देता है कि हम अन्त तक मसीह के साथ बने रहेंगे (इफिसियों 1:13-14)। इब्रानियों का लेखक वचन 39 में इस सत्य को सत्यापित करने के लिए आगे की ओर बढ़ता है: "पर हम हटनेवाले नहीं कि नाश हो जाएँ पर विश्वास करनेवाले हैं कि प्राणों को बचाएँ।" सच्चा मसीही विश्वासी वही है, जो अन्त तक विश्वास करता है ।
इस कारण एक मसीही जीवन परमेश्वर में विश्वास करते हुए बना रहता है, जिसने हमें बचाया है, हमें सामर्थ्य प्रदान की है, हमें स्वर्ग के लिए मुहरबन्द कर दिया है, और जिसकी सामर्थ्य से हम सदैव के लिए बने रहते हैं। दिन-प्रतिदिन का विश्वास वह होता है, जो बढ़ता और दृढ़ होता चला जाता है, क्योंकि हम उसके वचन में और प्रार्थना के माध्यम से परमेश्वर की खोज करते हैं और तब हम अन्य मसीही विश्वासियों के साथ एक होते हैं, जिनका लक्ष्य ठीक वैसा ही होता है, जैसा कि हमारा है।
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मसीही जीवन किस के जैसा होना चाहिए?