प्रश्न
बाइबल आधारित पुरोहितगण और सामान्य जन के मध्य में क्या भिन्नता है?
उत्तर
बाइबल में न तो शब्द पुरोहित या पादरी और न ही शब्द सामान्य जन प्रगट होते हैं। ये ऐसे शब्द हैं, जिनका प्रयोग आज "पुलपिट के पीछे खड़े हुए लोगों" बनाम "कुर्सियों पर बैठे हुए लोगों" के सन्दर्भ में किया जाता है। जबकि विश्वासियों को विभिन्न बुलाहट और वरदान प्राप्त होते हैं (रोमियों 12:6), वे सभी प्रभु के सेवक हैं (रोमियों 14:4)।
पौलुस ने स्वयं को तुखिकुस के साथ "भाई" और "सहकर्मी" माना (कुलुस्सियों 4:7)। पौलुस और इपफ्रास के साथ भी यही सच था (कुलुस्सियों 1:7)। इपफ्रदीतुस पौलुस का "भाई, सहकर्मी और संगी योद्धा" था (फिलिप्पियों 2:25)। पौलुस और तीमुथियुस ने स्वयं को कुरिन्थियों की कलीसिया का "सेवक" कहा है (2 कुरिन्थियों 4:5)। पतरस ने सीलास को अपने "विश्वासयोग्य भाई" के रूप में देखा है (1 पतरस 5:12)। प्रेरितों ने मसीह की सेवा के सन्दर्भ में "हमें" और "उन्हें" जैसे शब्दों में बातें नहीं की। वे स्वयं को कलीसिया में सभी विश्वासियों के साथ साथी मजदूर मानते थे।
"व्यावसायिक सेवकाई" और "सेवकाई" के मध्य भिन्नता का विचार तब उठ खड़ा हुआ, जब कलीसियाओं ने अपने स्वयं की मण्डलियों में से अगुवों की पहचान करना बन्द कर दिया और उन्हें अन्य स्थानों से "बुलाना" आरम्भ किया। कम से कम कलीसिया के इतिहास की पहली शताब्दी के मध्य में अधिकांश कलीसियाओं ने अपने सदस्यों के ऊपर परमेश्वर के हाथ को कार्य करते हुए पहचाना, जो उन्हें अगुवाई की भूमिकाओं को पूरा करने की बुलाहट दे रहा और सक्षम कर रहा था। स्थानीय कलीसियाई नेतृत्व के सम्बन्ध में नए नियम के लगभग सारे सन्दर्भ, चाहे "पास्टर," "प्राचीन," या "पर्यवेक्षक" के ही क्यों न हो, ऐसा ही कहते हैं। उदाहरण के लिए, प्रेरितों के काम 20:17-38 के साथ 1 तीमुथियुस 3:1-7 और 5:17-20 की तुलना करें। तीतुस 1:5-9 एक और उदाहरण है।
धीरे-धीरे, बातें परिवर्तित होने लगीं, जब तक कि मसीही संसार के कुछ भागो में "व्यावसायिक" पूर्ण-कालिक सेवकों की पहचान आरम्भ नहीं हो गई, जो कि स्वयं की पहचान "कलीसिया" को प्रस्तुत करती हुई करने लगी, जबकि "गैर-व्यावसायिक" लोगों को यीशु मसीह के साथी सेवकों के स्थान पर अनुयायियों या उपस्थित होने वाले विश्वासियों के रूप में देखा गया था। इस मानसिकता से पदानुक्रमित प्रद्धति में वृद्धि हुई, जिसमें पादरी या पास्टर और सामान्य जन के मध्य की दूरी में वृद्धि हुई।
बाइबल के सन्दर्भों को जैसे कि 1 कुरिन्थियों 12 से 14 तक, इफिसियों में से अधिकांश और रोमियों 12 को ध्यान में रखा जाना चाहिए। इन सभी सन्दर्भों में यीशु मसीह के सभी विश्वासियों को वास्तविक भाईचारे और नम्रता को बनाए रखने के ऊपर जोर दिया गया है, जिसे कि सभों को प्रदर्शित करने की आवश्यकता है, क्योंकि हम एक दूसरे को आशीष देने के लिए अपने आत्मिक वरदानों और पदों को प्रयोग में लाते हैं।
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बाइबल आधारित पुरोहितगण और सामान्य जन के मध्य में क्या भिन्नता है?