प्रश्न
कामों के बिना क्यों विश्वास मरा हुआ है?
उत्तर
याकूब कहता है कि, "अत: जैसे देह आत्मा बिना मरी हुई है, वैसा ही विश्वास भी कर्म बिना मरा हुआ है" (याकूब 2:26)। कामों के बिना विश्वास एक मरा हुआ विश्वास है, क्योंकि कार्यों की कमी एक अपरिवर्तित जीवन या आत्मिक रूप से मरे हुए मन से उत्पन्न होते हैं। ऐसे कई सन्दर्भ हैं, जो कहते हैं कि बचाए जाने वाले सच्चे विश्वास का परिणाम एक परिवर्तित जीवन में होगा, यह कि विश्वास हमारे द्वारा किए गए कार्यों के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। हम जैसे जीवन को व्यतीत करते हैं, वह हमें बताता है कि हम क्या विश्वास करते हैं और जिस विश्वास का हम अंगीकार करते हैं, क्या वह एक जीवित विश्वास है।
याकूब 2:14–26 को कभी-कभी धार्मिकता के लिए कर्मों-आधारित पद्धति बनाने के प्रयास में इसके सन्दर्भ से बाहर ले लिया जाता है, परन्तु यह पवित्रशास्त्र के कई अन्य अनुच्छेदों के विपरीत है। याकूब यह नहीं कह रहा है कि हमारे काम हमें परमेश्वर के सामने धर्मी बनाते हैं, परन्तु वास्तविक रूप से बचाने वाला विश्वास अच्छे कार्यों से ही प्रदर्शित होता है। काम उद्धार का कारण नहीं है; काम उद्धार का प्रमाण है। मसीह में विश्वास सदैव अच्छे कामों के परिणाम को उत्पन्न करता है। वह व्यक्ति जो मसीही विश्वासी होने का दावा करता है, परन्तु मसीह के प्रति जानबूझकर अवज्ञा में रहता है, वह झूठा या मरे हुए विश्वास का है और बचाया हुआ नहीं है। पौलुस मूल रूप से 1 कुरिन्थियों 6:9-10 में यही बात कहता है। याकूब दो भिन्न प्रकार के विश्वास में तुलना करता है — अर्थात् सच्चा विश्वास वह है जो बचाता है और झूठा विश्वास वह है जो मरा हुआ है। कई लोग मसीही विश्वासी होने का दावा करते हैं, परन्तु उनके जीवन और प्राथमिकताएँ दूसरी ही बात को इंगित करते हैं। यीशु ने इसे इस तरह से कहा है कि: "उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे। क्या लोग झाड़ियों से अंगूर, या ऊँटकटारों से अंजीर तोड़ते हैं? इसी प्रकार हर एक अच्छा पेड़ अच्छा फल लाता है और निकम्मा पेड़ बुरा फल लाता है। अच्छा पेड़ बुरा फल नहीं ला सकता, और न निकम्मा पेड़ अच्छा फल ला सकता है। जो जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में डाला जाता है। इस प्रकार उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे। "जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, 'हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्च र्यकर्म नहीं किए?' तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, 'मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ।'" (मत्ती 7:16–23)।
ध्यान दें कि यीशु का सन्देश याकूब के सन्देश जैसा ही है। परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी बचाने वाले सच्चे विश्वास का प्रतीक है। याकूब उद्धार के साथ आज्ञाकारिता को चित्रित करने के लिए अब्राहम और राहाब के उदाहरणों का उपयोग करता है। मात्र यह कहना कि हम यीशु में विश्वास करते हैं, हमें बचा नहीं सकता है, न ही कोई धार्मिक पूजा हमें बचा सकती है। हमें जो बचाता है, वह पवित्र आत्मा का मन का नवीनकृत करना है, और यह नवीनकृत किया जाना सदैव विश्वास के जीवन में देखा जाएगा, जिसमें परमेश्वर के प्रति निरन्तर आज्ञाकारिता का पाया जाना होता है।
विश्वास और कामों के सम्बन्ध की गलत समझ इस समझ से नहीं आती है कि बाइबल उद्धार के बारे में क्या सिखाती है। काम और विश्वास के सम्बन्ध में वास्तव में दो त्रुटियाँ पाई जाती हैं। पहली त्रुटि यह है कि, जब तक एक व्यक्ति ने अपने जीवन में किसी समय बिन्दु पर प्रार्थना की है या कहा है कि, "मैं यीशु में विश्वास करता हूँ," तो वह बचाया जाता है, चाहे कुछ भी न हो, वह बचाया जाता है। इस तरह से एक व्यक्ति ने एक बच्चे के रूप में, एक कलीसियाई आराधना में अपना हाथ उठाया था, को बचा हुआ होना माना जाता है, यद्यपि उसने कभी भी परमेश्वर के साथ जीवन व्यतीत करने की कोई इच्छा नहीं दिखायी है और वास्तव में वह स्पष्ट रूप में पाप में जीवन व्यतीत कर रहा है। इस शिक्षा, जिसे कभी-कभी "निर्णायक नवीनीकरण" कहा जाता है, खतरनाक और भ्रामक है। इस का विचार यह है कि विश्वास का अंगीकार करना ही एक व्यक्ति को बचा लेता है, चाहे वह शैतान की तरह ही जीवन क्यों न व्यतीत करे, तत्पश्चात् वह "शारीरिक मसीही" नामक विश्वासी के नाम से पुकारे जाने वाली एक नई श्रेणी में आ जाता है। यह विभिन्न अधार्मिकता भरी हुई जीवन शैली के लिए बहाने बनाने की अनुमति प्रदान करता है: एक व्यक्ति एक अपश्चातापी व्यभिचारी, झूठा, या एक बैंक चोर हो सकता है, परन्तु वह बचाया गया है; वह तो मात्र एक "शारीरिक" व्यक्ति है। तौभी, जैसा कि हम याकूब 2 में देख सकते हैं, विश्वास का एक व्यर्थ अंगीकार — ऐसा अंगीकार जो कि मसीह के प्रति आज्ञाकारिता के लिए स्वयं के जीवन को नहीं देता है — वास्तव में एक मरा हुआ विश्वास होता है, जो बचा नहीं सकता है।
कर्मों और विश्वास के सम्बन्ध में दूसरी त्रुटि यह है कि हम स्वयं को अपने कर्मों के कारण परमेश्वर के सामने धर्मी ठहराने के प्रयास को करते हैं। उद्धार कमाने के लिए काम और विश्वास का मिश्रण पूरी तरह से पवित्रशास्त्र की शिक्षा के विपरीत है। रोमियों 4:5 कहता है कि, "परन्तु जो काम नहीं करता वरन् भक्तिहीन के धर्मी ठहरानेवाले पर विश्वास करता है, उसका विश्वास उसके लिये धार्मिकता गिना जाता है।" याकूब 2:26 कहता है कि, "विश्वास के बिना काम मरा हुआ है।" इन दो सन्दर्भों के मध्य में कोई संघर्ष नहीं है। हम विश्वास के माध्यम से अनुग्रह से धर्मी ठहराए जाते हैं, और विश्वास का स्वाभाविक परिणाम काम में निकलता है, जिसे सभी देख सकते हैं। काम जो उद्धार के पश्चात् आते हैं, हमें किसी भी रीति से परमेश्वर के सामने धर्मी नहीं बनाते हैं; वे आसानी से पुनर्जीवित मन से बह निकलते हैं, ठीक वैसे ही जैसे स्वाभाविक रूप से एक सोते से पानी बह निकलता है।
मुक्ति परमेश्वर की ओर से किया जाने वाला एक सार्वभौमिक कार्य है, जिसके द्वारा एक नवजीवन न पाए हुए पापी को उसकी "दया के अनुसार नए जन्म के स्नान और पवित्र आत्मा के हमें नया बनाने के द्वारा हुआ" जीवन दिया जाता है (तीतुस 3:5), जिस के कारण उसका नया जन्म होता है (यूहन्ना 3:3)। जब ऐसा होता है, तो परमेश्वर क्षमा किए हुए पापियों को एक नया मन देता है और उसके भीतर एक नई आत्मा को डाल देता है (यहेजकेल 36:26)। परमेश्वर उसके पत्थर जैसे पापी-कठोर मन को हटा देता है और उसे पवित्र आत्मा से भर देता है। आत्मा तब बचाए हुए व्यक्ति को परमेश्वर के वचन की आज्ञा को मानने का कारण बना देता है (यहेजकेल 36:26-27)।
कामों के बिना विश्वास मरा हुआ है, क्योंकि यह एक ऐसे मन को प्रकट करता है, जिसे परमेश्वर के द्वारा परिवर्तित नहीं किया गया है। जब हम पवित्र आत्मा के द्वारा पुनर्जीविन को प्राप्त कर लेते हैं, तब हमारे जीवन उस नए जीवन को प्रदर्शित करते हैं। हमारे काम परमेश्वर की आज्ञाकारिता के गुण को प्रकट करेंगे। अनन्त विश्वास हमारे जीवन में आत्मा के फल के उत्पन्न होने में देखा जाएगा (गलतियों 5:22)। मसीही विश्वासी, अच्छे चरवाहे, मसीह से सम्बन्धित हैं। उसकी भेड़ों के रूप में हम उसकी आवाज को सुनते हैं और उसका अनुसरण करते हैं (यूहन्ना 10:26-30)।
कामों के बिना विश्वास मरा हुआ है, क्योंकि विश्वास एक नई सृष्टि के परिणाम को देता है, न कि व्यवहार के पाप से भरे हुए व्यवहार की पुनरावृत्ति से। जैसा कि 2 कुरिन्थियों 5:17 में लिखा हुआ है कि, "इसलिये यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है : पुरानी बातें बीत गई हैं; देखो, सब बातें नई हो गई हैं।"
कामों के बिना विश्वास मरा हुआ है, क्योंकि यह ऐसे मन से आता है, जिसे परमेश्वर के द्वारा पुनर्जीवित नहीं किया गया है। विश्वास के व्यर्थ अंगीकार में जीवन को बदलने की कोई शक्ति नहीं है। जो लोग विश्वास करने का दावा करते हैं, परन्तु उनके पास आत्मा नहीं है, वे स्वयं ही सुनेंगे कि मसीह उनसे क्या कहता है, "मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ" (मत्ती 7:23)।
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कामों के बिना क्यों विश्वास मरा हुआ है?