प्रश्न
क्यों इतने अधिक युवा विश्वास से फिरते चले जा रहे हैं?
उत्तर
बर्ना समूह, एक प्रमुख शोध संगठन जिसका ध्यान विश्वास और संस्कृति के सम्बन्ध में है, के द्वारा अभी कुछ समय पहले सर्वेक्षण किया गया था, जिसमें इस ने पाया कि संयुक्त राज्य की युवा वयस्क जनसँख्या में से एक प्रतिशत से कम के पास बाइबिल का वैश्विक दृष्टिकोण पाया जाता है। और भी चौंकाने वाले आंकड़ों से पता चलता है कि 18 से 23 वर्ष की उम्र के मध्य के मसीही विश्वासियों में से एक प्रतिशत के आधे से कम के पास बाइबल का वैश्विक दृष्टिकोण है।
बर्ना समूह ने उन लोगों को परिभाषित किया है, जिनके बारे में वे मानते हैं कि यदि उनके पास नीचे दिए हुए बाइबल के वैश्विक दृष्टिकोण हैं :
• यह कि पूर्ण नैतिक सत्य विद्यमान है,
• यह कि बाइबल पूरी तरह से त्रुटिहीन है,
• यह कि शैतान एक वास्तविक प्राणी है, न कि प्रतीकात्मक,
• यह कि एक व्यक्ति भले कामों के द्वारा परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लिए उद्धार को कमा नहीं सकता है,
• यह कि यीशु मसीह ने इस पृथ्वी पर एक पाप रहित जीवन यापन किया, और
• यह कि परमेश्वर ही स्वर्ग और पृथ्वी का सर्वोच्च सृष्टिकर्ता है और आज भी पूरे ब्रह्माण्ड के ऊपर राज्य करता है।
फुलर सेमिनरी के एक अन्य अध्ययन ने निर्धारित किया कि युवा वयस्क का कलीसिया को छोड़ना या उनके विश्वास में स्थिर रहने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक यह था कि क्या उनके द्वारा अपने घरों को छोड़ने से पहले पवित्र शास्त्र के सम्बन्ध में उनमें सन्देह और चिन्ताएँ थीं और क्या उनके विश्वास के बारे में उनकी चिन्ता और सन्देहों को व्यक्त करने के लिए उन्हें सुरक्षित स्थान मिला। महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे युवाओं के पास ऐसे वयस्क हैं, जो उन्हें उनके विश्वास के बारे में आशान्वित होने के लिए दिशा और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। इस तरह की सहायता दो स्थानों: उनके अभिभावकों और उनकी कलीसिया के युवाओं के लिए सेवकाई के कार्यक्रमों में पाई जाती है।
तथापि, फुलर अध्ययन में यह भी पाया गया कि अधिकांश कलीसियाई युवा कार्यक्रम युवाओं को विश्वास में दृढ़ करने के स्थान पर अपने ध्यान को केन्द्रित करने की अपेक्षा मनोरंजन और पिज्जा इत्यादि प्रदान करते हुए अपनी ऊर्जा को खर्च देने के लिए प्रयासरत् थे। परिणामस्वरूप, हमारे किशोर घर से निकलने के पश्चात् संसार में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए अच्छी तरह से सुसज्जित नही हैं।
इसके अतिरिक्त, बर्ना समूह और यूएसए टुडे दोनों के द्वारा मिलकर किए गए अध्ययन में यह पता चलता है कि मसीही युवाओं में से लगभग 75 प्रतिशत उनकी कलीसियाओं को उच्च विद्यालय छोड़ने के साथ ही छोड़ देते हैं। मुख्य कारणों में से एक वह ऐसा बौद्धिक सन्देहवाद के कारण करते हैं। यह परिणाम इसलिए है, क्योंकि हमारे युवाओं को अपने घरों या कलीसिया में बाइबल नहीं सिखाई जा रही है। आँकड़े बताते हैं कि हमारे बच्चे आज के समय में सार्वजनिक विद्यालयों में प्रति सप्ताह लगभग 30 घण्टे खर्च करते हैं, जहाँ उन्हें उन ही विचारों की शिक्षा दी जा रही है, जो बाइबल के सत्य के विपरीत हैं, उदाहरण के रूप में विकासवाद, समलैंगिकता की स्वीकृति इत्यादि। तत्पश्चात् वे एक टीवी के सामने प्रति सप्ताह 30 घण्टों तक घर में रहते हैं, जो कामुक व्यावसायिक सामग्रियों और बेवकूफ़ी से भरे हुए विज्ञापनों और अव्यवस्थित मजाकों से भरा पड़ा है या फिर वे अपने मित्रों के साथ फेसबुक के द्वारा "सम्पर्क" में रहते हुए घण्टों तक ऑनलाइन रहते हुए, एक दूसरे के साथ बातें करते हैं, या फिर खेलों को खेलते रहते हैं। जबकि कलीसिया में बाइबल की कक्षा के लिए साप्ताहिक समय मात्र 45 मिनट का होता है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि हमारे युवा मसीही वैश्विक दृष्टिकोण पाए बिना ही अपने घरों को छोड़ देते हैं। वे न तो अपने विश्वास के ऊपर अच्छी तरह से आधारित हैं, परन्तु साथ ही उन्हें सन्देहवादियों के विचारों की जाँच को बौद्धिक रीति से अच्छी तरह से करने की शिक्षा दी गई है, जो अनिवार्य रूप से उनके विश्वास को चुनौती देंगे। इन विद्यार्थियों में से अधिकांश महाविद्यालय की कक्षाओं में प्रवेश करने के लिए तैयार नहीं हैं, जहाँ पर महाविद्यालय के आधे से अधिक प्रोफेसर मसीहियों के विश्वास को शत्रुता से देखते हैं और उन्हें और उनके विश्वास को छोटा सा कर देने के लिए प्रत्येक दिए हुए अवसर का उपयोग कर लेते हैं।
यह कोई प्रश्न ही नहीं है कि इस बात के प्रति मुख्य कारक यह है कि युवा अपने मसीही विश्वास में दृढ़ हैं या इससे दूर चले जाते हैं, के पीछे उनके माता-पिता का प्रभाव होता है। यह ठीक वैसे ही है जैसे नीतिवचन कहता है, "लड़के को उसी मार्ग की शिक्षा दे जिसमें उसे चलना चाहिए, और वह बुढ़ापे में भी उससे न हटेगा" (नीतिवचन 22:6)। एक विशेष अध्ययन में पाया गया है कि जब दोनों अभिभावक कलीसिया के प्रति विश्वासयोग्य और इसमें सक्रिय होते हैं, तब उनकी सन्तानों का 93 प्रतिशत भी विश्वासयोग्य ही रहता है। जब अभिभावकों में से एक ही विश्वासयोग्य था, तब उनकी सन्तानों में से 73 प्रतिशत विश्वासयोग्य थे। जब अभिभावकों में से कोई भी विशेष रूप से सक्रिय नहीं था, तब उनकी सन्तानों में से 53 प्रतिशत विश्वासयोग्य रहे थे। उन उदाहरणों में जहाँ दोनों ही अभिभावक बिल्कुल भी सक्रिय नहीं थे और केवल कभी-कभी कलीसिया में भाग लिया गया था, तब यह प्रतिशत केवल 6 प्रतिशत पर ही चला गया।
आज की किशोर अपने भीतर ही वाद विवाद कर रहे हैं कि मसीही विश्वास अपनी तुलना विश्व के प्रतिस्पर्धा करती हुई अन्य मान्यताओं के साथ कैसे करता है। सापेक्षवादी अर्थात् सम्बन्धात्मक सत्य आधारित कथन जैसे "आपके पास आपका सत्य है और मेरे पास मेरा सत्य है" या "यीशु बहुत से महान् आध्यात्मिक अगुवों में से एक था", हमारे समाज में स्वीकृत हो रहे हैं। हमारे किशोरों को अपने धर्मनिरपेक्ष मित्रों के प्रति उत्तर देने के लिए पूरी तरह से प्रशिक्षित होकर ही घरों से निकलना चाहिए। उन्हें उनकी आशा के विषय में जब कोई पूछे, तो उत्तर देने के लिये सर्वदा तैयार रहना चाहिए (1 पतरस 3:15): क्या परमेश्वर वास्तव में विद्यमान है? क्यों वह इस संसार में पीड़ा और दु:खों को आने देता है? क्या बाइबल वास्तव में सत्य है? क्या पूर्ण सत्य है?
हमारे युवाओं को इस जानकारी के प्रति सर्वोत्तम रूप में सुसज्जित होना चाहिए कि वे किसी अन्य विश्वास पद्धित की अपेक्षा मसीही विश्वास के दावों को क्यों मानते हैं। और यह केवल उनके अकेले के लिए ही नहीं है, अपितु उन लोगों के लिए भी है, जो अपने विश्वास के बारे में पूछताछ करते हैं। मसीही विश्वास वास्तविक है; यह सत्य है। और इसके सत्य हमारे युवाओं के मनों में रोपित होने चाहिए। हमारे युवाओं को बौद्धिक रूप से चुनौतीपूर्ण प्रश्नों और आध्यात्मिक टकरावों का सामना करने के लिए तैयार किए जाने की आवश्यकता है, जिनसे उनकी मुलाकात उनके द्वारा घर छोड़ने पर होगी। धर्ममण्डन का एक ठोस कार्यक्रम, सत्यता का मण्डन का अध्ययन और उनके मसीही विश्वास की प्रामाणिकता और पवित्रशास्त्र की अचूकता के बारे में पता लगाने और इसका बचाव करने के लिए महत्वपूर्ण है।
कलीसिया को अपने युवा कार्यक्रमों के ऊपर दृढ़ दृष्टिकोण को रखना चाहिए। उन्हें नाटकों, समूहों और वीडियो के साथ मनोरंजन देने की अपेक्षा, हमें उन्हें तर्क, सत्य और एक मसीही वैश्विक दृष्टिकोण के साथ पवित्रशास्त्र में से शिक्षा देने की आवश्यकता है। फ्रैंक तुरेक, प्रसिद्ध लेखक और धर्ममण्डन के व्याख्याता, विश्वास से दूर हो रहे युवाओं की समस्या को सम्बोधित करते हुए कहा है, "हम इस बात की पहचान करने में असफल रहे हैं कि हम उन्हें किन बातों से जीत लें...हम उन्हें जीतते तो हैं। "
मसीही अभिभावक और हमारी कलीसियाओं को अपने युवाओं के मनों और हृदय को परमेश्वर के वचन के साथ विकसित करने के लिए सर्वोत्तम कार्यों को करने की आवश्यकता है (1 पतरस 3:15; 2 कुरिन्थियों 10:5)।
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