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प्रश्न

क्या धर्मी नूह के समय में जल प्रलय का आना सही था?

उत्तर


नूह के दिन के आए विश्‍वव्यापी जल प्रलय परमेश्‍वर का प्रत्यक्ष रूप से दिया गया न्याय था। बाइबल कहती है कि जल प्रलय ने "क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या रेंगनेवाले जन्तु, क्या आकाश के पक्षी, जो जो भूमि पर थे सब पृथ्वी पर से" से मिटा दिए – उन सभों को जो श्‍वास लेते थे (उत्पत्ति 7:23)। कुछ लोग को आज जल प्रलय की कहानी से ठेस पहुँचती है, जो यह कहते हैं कि यह परमेश्‍वर के अन्याय, एकपक्षीय न्याय, या केवल पूर्ण रूप से अभाव के होने का प्रमाण है। वे बाइबल में एक अनिश्‍चित स्वभाव वाले परमेश्‍वर को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हैं, जो पक्षपाती तरीके से न्याय करता है और चाहता है कि बच्चे और सभी निर्दोष जानवरों सहित प्रत्येक प्राणी डूब जाए।

परमेश्‍वर के चरित्र पर ऐसे आक्रमणों में नया कुछ भी नहीं है। जब तक संसार में पापी रह रहे हैं, तब तक आरोप लगाए जाते रहेंगे कि परमेश्‍वर अन्यायी है। आदम के द्वारा चतुराई से भरे हुए दोष को दूसरे पर स्थानांतरित करने के ऊपर विचार करें। जब वर्जित फल खाने के बारे में पूछा गया, तो आदम ने कहा, "जिस स्त्री को तूने मेरे संग रहने को दिया है - उसी ने उस वृक्ष का फल मुझे दिया है" (उत्पत्ति 3:12)। अर्थात् यह स्त्री, और परमेश्‍वर की गलती थी, क्योंकि उसने स्त्री बनाई थी। परन्तु परमेश्‍वर को दोषी ठहराने से आदम के पाप को कम नहीं किया गया। और जल प्रलय को भेजने के लिए परमेश्‍वर को "अन्यायी" कहने से यह हमारे पाप को कम नहीं करता है।

नूह के दिनों के जल प्रलय के इतिहास में कई समकक्ष वर्णन पाए जाते हैं। परमेश्‍वर ने कनान के लोगों को वहाँ से मिटा देने के लिए आदेश देते हुए न्याय किया (व्यवस्थाविवरण 20:16-18)। उसने इसी तरह सदोम और अमोरा (उत्पत्ति 19:24-25), नीनवे (नहूम 1:14), और सूर का न्याय किया (यहेजकेल 26:4)। और महान श्वेत सिंहासन के सामने अन्तिम न्याय के परिणामस्वरूप सभी दुष्टों को सदैव के लिए आग की झील में डाला जाएगा (प्रकाशितवाक्य 20:11-15)। बाइबल का सरल सा सन्देश यह है कि परमेश्‍वर पाप का न्याय करता है, चाहे यह आक्रमण करने वाली सेना के द्वारा हो, अग्नि और गंधक के द्वारा हो, या एक विनाशकारी विश्‍वव्यापी जल प्रलय के द्वारा ही क्यों न हो।

जल प्रलय सही था, क्योंकि इसके आने की आज्ञा परमेश्‍वर ने दी थी (और परमेश्‍वर धर्मी है)। "यहोवा सच्चा है... उस में कुटिलता कुछ भी नहीं" (भजन संहिता 92:15)। "तेरे [परमेश्‍वर के] सिंहासन का मूल धर्म और न्याय है ..." (भजन संहिता 89:14)। परमेश्‍वर सदैव सही करता है। उनके आदेश और न्याय सदैव सही होते हैं। यदि उसने यह आदेश दिया कि पूरे संसार में जल प्रलय आ जाए, तो वह ऐसा करने में सही था, यह बात कोई अर्थ नहीं रखती है कि मानवीय सन्देहवादी क्या कहता है। यह आश्‍चर्य की बात नहीं है कि हम न्याय को ऐसे तरीके से परिभाषित करते हैं, कि जो स्वयं को लाभ पहुँचाता है।

जल प्रलय सही था, क्योंकि मनुष्य जाति में बुराई थी। "यहोवा ने देखा कि मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई है, और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है वह निरन्तर बुरा ही होता है" (उत्पत्ति 6:5)। हम उस दिन की दुष्टता की सीमा की पूरी तरह से कल्पना नहीं कर सकते हैं। हमने ऐसा कभी नहीं देखा है। बुराई "बहुत" अधिक थी, और प्रत्येक व्यक्ति के मन के विचार में केवल निरन्तर बुराई ही बनी हुई थी। संसार में कोई भलाई नहीं थी; प्रत्येक व्यक्ति पूरी तरह से दूषित था। उनके भीतर कुछ भी ऐसा नहीं था, जो बुरा नहीं था। नूह के दिनों के लोग पाप से खेल नहीं रहे थे; उन्होंने तो इसमें डुबकी ही लगा ली थी, और उन्होंने जो कुछ भी किया वह घृणित ही था।

मूलपाठ जल प्रलय से पहले व्याप्त बुराई की सीमा के रूप में कुछ संकेतों को प्रदान करता है। एक समस्या भारी हिंसा का व्याप्त होना था: "उस समय पृथ्वी परमेश्‍वर की दृष्‍टि में बिगड़ गई थी, और उपद्रव से भर गई थी" (उत्पत्ति 6:11)। कैन के वंशज, पहले हत्यारे, और तत्पश्‍चात् लहू बहाने वाले हाथों से भरे हुए थे। अन्य बुराई जल प्रलय के आने से पूर्व लोगों में गुप्त कामुकता का व्याप्त होना था। उत्पत्ति 6:1-4 में नपीली लोगों का उल्लेख, "शूरवीर लोग जिनकी कीर्ति प्राचीनकाल से प्रचलित थी" के रूप में किया गया है, जो पृथ्वी पर स्वर्ग से नीचे गिरने वाले स्वर्गदूतों और मनुष्य की स्त्रियों के सम्बन्धों के उत्पाद थे। इस पाप में भाग लेने वाली दुष्टात्माओं को वर्तमान में "अन्धेरे कुण्ड में...न्याय के दिन" के लिए डाल दिया है" (2 पतरस 2:4)। जिन लोगों ने इसमें भाग लिया – और स्वयं नपीली लोग - जल प्रलय में नष्ट हो गए थे। जल प्रलय-से पूर्व की मानवता का बाइबल आधारित विवरण यह है कि वे पूरी तरह से कठोर और पश्‍चाताप न करने से दूर हो गए थे। परिस्थितियाँ इतनी अधिक बुरी थीं कि "यहोवा पृथ्वी पर मनुष्य को बनाने से पछताया, और वह मन में अति खेदित हुआ" (उत्पत्ति 6:6)।

परन्तु डूबने वाले बच्चों के बारे में क्या कहा जाए? सच्चाई तो यह है कि पाप पूरे समाज को ही प्रभावित करता है, केवल उन्हीं लोगों को नहीं, जो जानबूझकर बुराई में संलग्न होते हैं। जब एक समाज गर्भपात को बढ़ावा देता है, तो परिणामस्वरूप बच्चे मर जाते हैं। जब एक पिता या माता अवैध रूप से नशीली दवाओं का सेवन करना आरम्भ कर देते हैं, तो उनके बच्चे इसके परिणामों को प्राप्त करते हैं। और, नूह की पीढ़ी के विषय में, जब एक संस्कृति ने स्वयं को हिंसा और पथ भ्रष्ट कामुकता के लिए दे दिया, तो इसके परिणाम को उनके बच्चों को भुगतना पड़ा। मनुष्य अपने और अपने बच्चों के ऊपर ही जल प्रलय को ले आया।

जल प्रलय सही था, क्योंकि सारे पापों के लिए दण्ड मृत्यु दण्ड वाला अपराध है। "पाप की मजदूरी मृत्यु है" (रोमियों 6:23)। हमें आश्‍चर्यचकित नहीं होना चाहिए कि परमेश्‍वर ने जल प्रलय के साथ संसार की जनसँख्या को मिटा दिया; हमें आश्‍चर्यचकित होना चाहिए कि उसने हमारे ऐसा कुछ नहीं किया है! पापियों में पाप के प्रति हल्का दृष्टिकोण होता है, परन्तु सभी पाप मृत्यु के योग्य हैं। हम परमेश्‍वर की दया को हल्के में लेते हैं, मानो कि हम इसे पाने के योग्य हैं, परन्तु हम परमेश्‍वर के न्याय के बारे में शिकायत करते हैं, मानो कि यह किसी भी तरह से अनुचित है, मानो कि हम इसे पाने के योग्य नहीं हैं।

जल प्रलय सही था, क्योंकि सृष्टिकर्ता को ऐसा करने का अधिकार है, क्योंकि वह अपनी सृष्टि के साथ जैसा चाहे वैसा कर सकता है। क्योंकि कुम्हार अपने चाक पर रखी हुई मिट्टी के साथ जो चाहे उसे कर सकता है, इसलिए परमेश्‍वर को ऐसा करने का अधिकार है, कि वह वही करे जो उसे प्रसन्न करता है। "जो कुछ यहोवा ने चाहा उसे उसने आकाश और पृथ्वी और समुद्र और सब गहिरे स्थानों में किया है" (भजन संहिता 135:6)।

जल प्रलय की कहानी का सबसे अद्भुत अंश यह है कि: "परन्तु यहोवा की दृष्टि नूह पर बनी रही" (उत्पत्ति 6:8)। परमेश्‍वर का अनुग्रह उसकी क्षतिग्रस्त, पाप-से दूषित सृष्टि में विस्तारित हुआ और एक व्यक्ति और उसके परिवार को उसने सुरक्षित रखा। ऐसा करने के द्वारा परमेश्‍वर ने शेत के वंश के माध्यम से भक्तिमयी रीति से उसके पीछे चलने वाले मनुष्यों को सुरक्षित किया। और, जानवरों को जहाज में लाने के द्वारा परमेश्‍वर ने अपनी शेष रचना को भी सुरक्षित किया। इस तरह से, परमेश्‍वर का न्याय पूर्ण रीति से विनाश करना नहीं; अपितु यह एक पुन: आरम्भ था।

नूह के समय में आया हुआ परमेश्‍वर का न्याय अनुग्रह के साथ आया था। परमेश्‍वर यहोवा, ईश्‍वर "दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य, हज़ारों पीढ़ियों तक निरन्तर करुणा करनेवाला, अधर्म और अपराध और पाप का क्षमा करनेवाला है, परन्तु दोषी को वह किसी प्रकार निर्दोष न ठहराएगा... " (निर्गमन 34:6-7, शब्दों को तिरछा करते हुए अतिरिक्त जोर दिया गया है)। परमेश्‍वर चाहता है कि दुष्ट पश्‍चाताप करे और जीवन पाए (यहेजकेल 18:23)। परमेश्‍वर ने अम्मोरियों के ऊपर चार सौ वर्ष तक अपने न्याय को भेजने में देर की (उत्पत्ति 15:16)। परमेश्‍वर वहाँ रहने वाले दस धर्मी लोगों के कारण सदोम को बचा सकता था (उत्पत्ति 18:32)। परन्तु, अन्ततः, उनका न्याय उतर ही आया।

जहाज बनाने के लिए नूह को एक सौ वर्ष तक का समय लगा। हम यह कल्पना कर सकते हैं, कि यदि अन्य लोग जहाज पर चढ़ना चाहते थे और बचाए जाना चाहते थे, तो वे ऐसा कर सकते थे। परन्तु उन्हें विश्‍वास करने की आवश्यकता थी। एक बार जब परमेश्‍वर ने इसके द्वार को बन्द कर दिया, तो बहुत देर हो चुकी थी; उन्होंने अपने अवसर को गवाँ दिया था (उत्पत्ति 7:16)। मुख्य बात यह है कि परमेश्‍वर कभी भी पूर्व चेतावनी दिए बिना अपने न्याय को नहीं भेजता है। जैसा कि टीकाकार मैथ्यू हेनरी ने कहा, "परमेश्‍वर के न्याय से कोई भी दण्डित नहीं होता है, परन्तु केवल वही लोग जो परमेश्‍वर के अनुग्रह से सुधारे जाने के प्रति घृणा रखते हैं।"

नूह के दिन का विश्‍वव्यापी जल प्रलय पाप के प्रति एक सही दण्ड था। जो लोग जल प्रलय को अन्यायपूर्ण कहते हैं, वे कदाचित् न्याय के विचार को ही पसन्द नहीं करते हैं। नूह की कहानी सजीवी रूप से स्मरण दिलाने वाली कहानी है, चाहे आप इसे पसन्द करें या नहीं, एक और न्याय आ रहा है: "जैसे नूह के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा।" (मत्ती 24:37)। क्या आप तैयार हैं, या कही आप इसके दण्ड को तो नहीं पाएँगे?)।

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