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प्रश्न

मानवाधिकारों के बारे में बाइबल क्या कहती है?

उत्तर


बाइबल का अध्ययन किसी को भी ईमानदारी के साथ करते हुए इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि परमेश्वर की विशेष रचना के रूप में मनुष्य को कुछ विशेष "मानवाधिकारों" के साथ आशीषित किया गया है। बाइबल का कोई भी सच्चा विद्यार्थी समानता और न्याय और परोपकार जैसे आदर्शों की ओर प्रेरित हो जाएगा। बाइबल कहती है कि मनुष्य को परमेश्वर के स्वरूप में रचा गया है (उत्पत्ति 1:27)। इस कारण, मनुष्य की एक निश्चित प्रतिष्ठा है और उसे शेष सृष्टि के ऊपर प्रभुत्व दिया गया है (उत्पत्ति 1:26)।

मनुष्य में परमेश्वर के स्वरूप का अर्थ यह भी है कि हत्या करना सबसे जघन्य अपराध है। "जो कोई मनुष्य का लहू बहाएगा/ उसका लहू मनुष्य ही से बहाया जाएगा,/ क्योंकि परमेश्‍वर ने मनुष्य को/ अपने ही स्वरूप के अनुसार बनाया है" (उत्पत्ति 9:6)। दण्ड की गम्भीरता अपराध की गम्भीरता को देखते हुए दी गई है। मूसा की व्यवस्था इस बात के उदाहरणों से भरी हुई है कि कैसे परमेश्वर सभों से एक दूसरे के प्रति मानवीय व्यवहार करने की अपेक्षा करता है। दस आज्ञाएँ हत्या, चोरी, लालच, व्यभिचार और झूठी गवाही देने के विरूद्ध निषेध पाए जाते हैं। ये पाँच व्यवस्थाएँ हमारे साथ रहने वाले व्यक्ति के प्रति नैतिक व्यवहार को बढ़ावा देती हैं। व्यवस्था के अन्य उदाहरणों में परदेशियों के साथ अच्छी तरह से व्यवहार करने (निर्गमन 22:21; लैव्यव्यवस्था 19:33-34), गरीबों को भोजन प्रदान करने (लैव्यव्यवस्था 19:10; व्यवस्थाविवरण 15:7-8), गरीबों को ब्याज मुक्त ऋण देने; (निर्गमन 22:25), और प्रत्येक पचास वर्षों के पश्चात् सभी बन्धुवाई में रहने वाले गुलामों को स्वतन्त्र कर देने (लैव्यव्यवस्था 25:39-41) के लिए भी आदेश सम्मिलित हैं।

बाइबल शिक्षा देती है कि परमेश्वर पक्षपात नहीं करता है या पक्षपात नहीं दिखाता है (प्रेरितों के काम 10:34)। प्रत्येक व्यक्ति उसकी एक अनोखी रचना है, और वह हर एक से प्रेम करता है (यूहन्ना 3:16; 2 पतरस 3:9)। "धनी और निर्धन दोनों एक दूसरे से मिलते हैं;/ यहोवा उन दोनों का कर्ता है" (नीतिवचन 22:2)। इसके बदले में, बाइबल शिक्षा देती है कि मसीहियों को जाति, लिंग, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि या सामाजिक प्रतिष्ठा के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए (गलातियों 3:28; कुलुस्सियों 3:11; याकूब 2:1-4)। हमें सभों के प्रति दयालु होना हैं (लूका 6:35-36)। बाइबल गरीबों और दलितों का लाभ उठाने के विरूद्ध कठोरता के साथ चेतावनी देती है। "जो कंगाल पर अंधेर करता, वह उसके कर्ता की निन्दा करता है, परन्तु जो दरिद्र पर अनुग्रह करता, वह उसकी महिमा करता है। " (नीतिवचन 14:31)।

इसकी अपेक्षा, परमेश्‍वर के लोगों को दूसरों को सहायता देने की आवश्यकता है (नीतिवचन 14:21; मत्ती 5:42; लूका 10:30-37)। पूरे इतिहास में, अधिकांश मसीही विश्वासी अपने साथी मनुष्यों की सहायता करने के लिए अपने उत्तरदायित्व को समझ चुके हैं। संसार में असँख्य अस्पतालों और अनाथालयों की स्थापना इससे सम्बन्धित मसीहियों के द्वारा की गई थी। इतिहास के बड़े मानवतावादी सुधारों में से कई, गुलाम प्रथा सहित, मसीही विश्वासी पुरुषों और स्त्रियों के द्वारा न्याय की माँग की गई थी।

आज, मसीही विश्वासी अभी भी मानव अधिकारों के हनन का सामना करने और सभी लोगों की भलाई को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं। जब वे पूरे संसार में सुसमाचार का प्रचार करते हैं, तब वे कुओं की खुदाई कर रहे होते हैं, फसलों को उगा रहे होते हैं, कपड़ों को दे रहे होते हैं, दवाओं को वितरित कर रहे होते हैं, और निराश्रितों को शिक्षा प्रदान कर रहे होते हैं। यह ठीक वैसा ही है, जैसा इसे होना चाहिए।

एक ऐसी भावना पाई जाती है, जिसमें मसीही विश्वासी का अपना कोई "अधिकार" नहीं है, क्योंकि उसने अपना जीवन मसीह को समर्पित कर दिया है। विश्वासी मसीह की "सम्पत्ति" है। "... तुम अपने नहीं हो? क्योंकि दाम देकर मोल लिये गए हो..." (1 कुरिन्थियों 6:19-20)। परन्तु हम पर परमेश्वर के अधिकार का होना हममें परमेश्वर के स्वरूप को नकारना नहीं है। परमेश्वर की इच्छा के प्रति हमारा समर्पण, "अपने पड़ोसी को अपने जैसा प्रेम करने" के लिए परमेश्वर की आज्ञा को समाप्त नहीं करता है (मत्ती 22:39)। वास्तव में, हम परमेश्वर की सेवा तब और अधिक करते हैं, जब हम दूसरों की सेवा करते हैं (मत्ती 25:40)।

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