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प्रश्न

क्या बाइबल में पापों की सूची दी हुई है?

उत्तर


हम अक्सर सोचते हैं कि यदि हमारे पास जीवन यापन करने के लिए एक सूची होती तो हमारे जीवन को सरल बनाया जा सकता है। इन सूचियों में हमारे पास खरीददारी की सूचियाँ, इन कामों को करना है — वाली सूचियाँ, इच्छा सूचियाँ, इत्यादि सम्मिलित हैं। निश्‍चित रूप से, यदि परमेश्‍वर चाहता कि हम उसके लिए जीवन यापन करने में सफलता प्राप्त करें, तो पापों से बचने के लिए बाइबल में एक सूची होनी चाहिए थी। जब हम बाइबल को देखते हैं, तो हमें निश्‍चित रूप से पापों की सूचियाँ मिलती हैं, परन्तु हम यह भी खोजते हैं कि इन सूचियों का कोई अन्त ही नहीं है।

आरम्भ से ही, परमेश्‍वर ने मनुष्य को बताया है कि क्या सही और क्या गलत था। वाटिका में आदम से, परमेश्‍वर ने कहा था कि, "तू वाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है; पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना : क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा" (उत्पत्ति 2:16-17)। जब इस्राएल की सन्तान मिस्र से निकली, तो परमेश्‍वर ने सीनै पर्वत पर उनके साथ अपनी व्यवस्था को स्थापित किया। दस आज्ञाएँ (निर्गमन 20:1-17) पूरी व्यवस्था नहीं थी, परन्तु उन सभों का सार था, जिसे परमेश्‍वर ने उन्हें आगे बताना था। लैव्यव्यवस्था और व्यवस्था विवरण की पूरी पुस्तकें इस्राएलियों के परमेश्‍वर की व्यवस्था को प्रकट करने के लिए समर्पित हैं। यहूदी शास्त्री कहते हैं कि तोराह (मूसा की पुस्तकें) में 613 आज्ञाएँ पाई जाती हैं। उनमें से, 365 "तू नहीं करना ..." वाली श्रेणी की हैं।

इन पापों के कुछ उदाहरण क्या हैं? दस आज्ञाओं से हमारे पास झूठी आराधना, मूर्तिपूजा, परमेश्‍वर के नाम का दुरुपयोग, सब्त का उल्लंघन करना, माता-पिता का अनादर करना, हत्या, व्यभिचार, चोरी करना, झूठ बोलना/दोष लगाना करना और लालच करना पाया जाता है। पहाड़ी उपदेश में (मत्ती 5-7), यीशु इन पापों में से कुछ को एक नए स्तर पर ले गया। हत्या के बारे में, यीशु ने कहा, "जो कोई अपने भाई पर क्रोध करेगा, वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा ... और जो कोई कहे 'अरे मूर्ख' वह नरक की आग के दण्ड के योग्य होगा" (मत्ती 5:22)। व्यभिचार के बारे में, यीशु ने कहा, "जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्‍टि डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका" (मत्ती 5:28)। गलातियों 5:19-21 में, हमें बताया जाता है, "शरीर के काम तो प्रगट हैं, अर्थात् व्यभिचार, गन्दे काम, लुचपन, मूर्तिपूजा, टोना, बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म, डाह, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा और इनके जैसे और-और काम हैं, इनके विषय में मैं तुम से पहले से कह देता हूँ जैसा पहले कह भी चुका हूँ, कि ऐसे ऐसे काम करनेवाले परमेश्‍वर के राज्य के वारिस न होंगे।" केवल इन्हीं संक्षिप्त सूचियों में अधिकांश लोगों को जीवन भर के लिए काम करने के लिए बहुत सारी बातें मिलेंगी। विभिन्न सूचियों के अतिरिक्त, जो हमें पवित्रशास्त्र में मिलती हैं, 1 यूहन्ना 5:17 में बताया गया है कि "सब प्रकार का अधर्म तो पाप है।" न केवल बाइबल हमें उन बातों को बताती है, जो नहीं करनी हैं, अपितु याकूब 4:17 में, हमें सूचित किया जाता है कि "जो जो कोई भलाई करना जानता है और नहीं करता, उसके लिये यह पाप है।"

जब हम पापों की सूची को संकलित करने का प्रयास करते हैं, तो हम स्वयं को अपनी विफलताओं के अपराध के अधीन आत्मदोष में पाते हैं, क्योंकि हम पाते हैं कि हमने हमारी जानकारी से कहीं अधिक पाप किया है। पवित्रशास्त्र हमें सूचित करता है कि, "जो जितने लोग व्यवस्था के कामों पर भरोसा रखते हैं, वे सब शाप के अधीन हैं, क्योंकि लिखा है, "जो कोई व्यवस्था की पुस्तक में लिखी हुई सब बातों के करने में स्थिर नहीं रहता, वह शापित है'" (गलातियों 3:10)। जबकि वह कथन स्व-पराजित होने वाला प्रतीत हो सकता है, यह वास्तव में सबसे बड़ा शुभ समाचार है। क्योंकि हम कभी भी परमेश्‍वर की व्यवस्था को पूरी तरह से पालन नहीं कर सकते हैं, इसलिए इसके प्रति एक और उत्तर होना चाहिए, और यह बाद में कुछ वचनों में पाया जाता है: "मसीह ने जो हमारे लिये शापित बना, हमें मोल लेकर व्यवस्था के शाप से छुड़ाया, क्योंकि लिखा है, 'जो कोई काठ पर लटकाया जाता है वह शापित है।' यह इसलिये हुआ कि अब्राहम की आशीष मसीह यीशु में अन्यजातियों तक पहुँचे, और हम विश्‍वास के द्वारा उस आत्मा को प्राप्‍त करें जिसकी प्रतिज्ञा हुई है।" (गलातियों 3:13-14)। परमेश्‍वर की व्यवस्था, या बाइबल में पापों को जिस सूची को हम पाते हैं, वह "व्यवस्था मसीह तक पहुँचाने के लिये हमारी शिक्षक हुई है कि हम विश्‍वास से धर्मी ठहरें" (गलातियों 3:24)।

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