प्रश्न
यीशु के आश्चर्यकर्म क्या थे? यीशु ने कौन से आश्चर्यकर्म प्रगट किए?
उत्तर
परमेश्वर का आश्चर्यकर्म एक असाधारण या अप्राकृतिक घटना है, जिसे किसी शक्तिशाली कार्य के माध्यम से एक विशेष सन्देश को प्रकट करने या उसकी पुष्टि करने के लिए किया जाता है। यीशु ने बहुत सारे आश्चर्यकर्मों को प्रगट किया। उसने जो भी आश्चर्यकर्म किए, वे परमेश्वर की महिमा करने, दूसरों की सहायता करने और यह प्रमाणित करने के लिए किए गए थे कि वह वास्तव में वही है, जो उसने स्वयं के लिए कहा था — अर्थात् वह परमेश्वर का पुत्र था। उदाहरण के लिए, जब उसने मत्ती 8 में तूफान को शान्त किया, तब शिष्य अचम्भित हो गए और उन्होंने कहा, "यह कैसा मनुष्य है कि आँधी और पानी भी उसकी आज्ञा मानते हैं!" (वचन 27)।
सुसमाचारों ने यीशु के द्वारा किए गए कई आश्चर्यकर्मों को लिपिबद्ध किया है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि, ऐसे बहुत से काम हैं, जिन्हें यीशु ने प्रगट किया, जो थोड़े से लेखनकार्य में लिपिबद्ध नहीं हो सकते हैं। यूहन्ना स्वतन्त्रता के साथ स्वीकार करता है कि, "यीशु ने और भी बहुत से चिह्न चेलों के सामने दिखाए, जो इस पुस्तक में लिखे नहीं गए... और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूँ कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे संसार में भी न समातीं" (यूहन्ना 20:30 और 21:25)।
भिन्न सुसमाचार अक्सर एक ही आश्चर्यकर्म लिपिबद्ध करते हैं, प्रत्येक थोड़ी सी भिन्नता के साथ इसके विवरणों को प्रस्तुत करते है। कभी-कभी, यह जानना असम्भव हो जाता कि क्या सुसमाचार में लिपिबद्ध एक विशेष आश्चर्यकर्म केवल वही एक आश्चर्यकर्म है, जिसे विभिन्न पहलुओं के कारण लिपिबद्ध किया गया है या कहीं यह दो भिन्न आश्चर्यकर्मों के रूप में तो लिपिबद्ध नहीं है। सुसमाचार के लेखकों में से किसी का भी सरोकार विशेष रूप से कठोर कालक्रम से नहीं है और वे कभी-कभी हमें वे सभी विवरण नहीं देते हैं, जिन्हें हम जानना चाहते हैं।
यीशु के द्वारा प्रगट किए गए और नीचे सूचीबद्ध किए गए आश्चर्यकर्मों को व्यापक श्रेणियों में यह निर्धारित करने का प्रयास किए बिना वर्गीकृत किया गया है कि किन आश्चर्यकर्मों को कई बार लिपिबद्ध किया गया है और जो प्रत्येक सुसमाचार के लिए विशेष हो सकते हैं:
चँगाई के आश्चर्यकर्म
• कोढ़ियों को शुद्ध करना: मत्ती 8:1-4; मरकुस 1:41-45; लूका 5:12-14; 17:11-19
• अन्धे को दृष्टि मिलना: मत्ती 9:27–31; मरकुस 8:22-26; 10:46–52; लूका 18:35–43; यूहन्ना 9:1-38
• लोग दूर से ही चँगे हो जाते हैं: मत्ती 8:5–13; लूका 7:2-10; यूहन्ना 4:46–54
• पतरस की सास की चँगाई: मरकुस 1:29–31
• लकवा का मारा हुआ व्यक्ति चँगा हो गया: मत्ती 9:1-8; मरकुस 2:1-12; लूका 5:17–26
• यीशु के कपड़ों को छूने वाले लोग चँगे हो जाते हैं: मत्ती 9:20–23; 14:35-36; मरकुस 5:25-34; 6:53-56; लूका 8:43-48
• सब्त के दिन विभिन्न चँगाइयों को दिया जाना: मरकुस 3:1-6; लूका 6:6-10; 13:10-17; 14:1-6; यूहन्ना 5:1-18
• बहरे और गूँगे व्यक्ति का चँगा होना: मरकुस 7:31-37
• कटे हुए-कान का चँगा होना: लूका 22:47-53
• दुष्टात्माओं को निकाल बाहर करना (और दुष्टात्माओं के साथ आने वाली विशेष शारीरिक बीमारियों का चँगा किया जाना): मत्ती 9:32-33; 17:14-18; मरकुस 9:14-29; लूका 9:37–42
•दुष्टात्माओं को बाहर निकाला (किसी विशेष शारीरिक बीमारियों का उल्लेख नहीं किया गया): मत्ती 8:28-34; 15:21-28; मरकुस 1:23-27; 5:1-20; 7:24-30; लूका 4:31-37; 8:26-39
• भीड़ में कइयों का चँगा होना: मत्ती 9:35; 15:29-31; मरकुस 1:32-34; 3:9-12; लूका 6:17-19
• मरे हुए को जीवित किया जाना: मत्ती 9:18–26; मरकुस 5:21–43; 8:40-56; यूहन्ना 11:1-45
अन्य आश्चर्यकर्म
• एक बड़ी भीड़ को भोजन खिलाना (भोजन को बढ़ा देना): मत्ती 14:13-21; 15:32-39; मरकुस 6:33-44; 8:1-10; लूका 9:12–17; यूहन्ना 6:1-14
• पानी पर चलना: मत्ती 14:22-33 (पतरस भी); मरकुस 6:45-52; यूहन्ना 6:15–21
• एक तूफान को शान्त करना: मत्ती 8:22-25; मरकुस 4:35-41; लूका 8:22-25
• जाल को मछलियों से भर देना: लूका 5:1-11; यूहन्ना 21:1-14
• पतरस मछली के मुँह में पैसे को (मन्दिर के कर को देने लिए) पकड़ता है: मत्ती 17:24-27
• पानी को दाखरस में बदलना: यूहन्ना 2:1-11
• शाप दिए हुए वृक्ष का मुरझा जाना: मत्ती 21:18-22; मरकुस 11:12-25
ऊपर दी गई सूची में, हम देखते हैं कि सुसमाचार में लिपिबद्ध किए गए अधिकांश आश्चर्यकर्म चँगाई के आश्चर्यकर्म हैं। जबकि चँगाई को प्राप्त करने वालों को उनकी शारीरिक बीमारियों से छुटकारा मिला था, आश्चर्यकर्मों का घोषित उद्देश्य कदाचित् शारीरिक पीड़ा का सरल निवारण है। चँगाई का आश्चर्यकर्म सदैव एक बड़े सत्य की ओर संकेत करता है, अर्थात्, यीशु अधिकार के साथ परमेश्वर का पुत्र है। जब वह दुष्टात्माओं को बाहर निकालता है, तो उनके ऊपर उसके अधिकार के होने पर जोर दिया गया है। जब वह सब्त के दिन चँगा करता है, तो सब्त के दिन के प्रभु के रूप में उसका अधिकारी होने पर जोर दिया गया है। इसी तरह से, प्रकृति के ऊपर किए गए कई आश्चर्यकर्म उसके ऊपर यीशु के अधिकार के होने पर जोर देते हैं।
यीशु के आश्चर्यकर्मों का अध्ययन करने के लिए सुसमाचारों के माध्यम से इनका पठन् करना और प्रत्येक आश्चर्यकर्म की एक सूची बनाने और प्रदान किए गए स्पष्टीकरण की तुलना में और कोई उत्तम तरीका नहीं है। (उदाहरण के लिए, यूहन्ना 2 में हम यीशु को पानी से दाखरस बनाते हुए पढ़ते हैं। उस आश्चर्यकर्म ने मेजबान की होने वाली सम्भावित शर्मिंदगी को कम कर दिया था और उससे उसकी माँ भी आनन्दित हुई थी, जिसने उसे इसमें सम्मिलित होने के लिए कहा, परन्तु इसका प्राथमिक परिणाम वचन 11 में लिपिबद्ध है: "यीशु ने गलील के काना में अपना यह पहला चिह्न दिखाकर अपनी महिमा प्रगट की और उसके चेलों ने उस पर विश्वास किया।" कई बार एक आर्श्चकर्म का उद्देश्य सीधा ही दिया गया है, और कई बार जिन्होंने इसे देखा उनके प्रतिउत्तर में लिपिबद्ध किया गया है। यीशु ने कभी भी किसी दिखावे मात्र के लिए आश्चर्यकर्म को प्रगट नहीं किया। प्रत्येक आश्चर्यकर्म एक बड़े सत्य की ओर संकेत करता है। यूहन्ना ने विशेष रूप से इस बात पर जोर देने के लिए यीशु के आश्चर्यकर्मों को "चिन्ह" के रूप में उद्धृत किया है।
5,000 को भोजन खिलाना एक उदाहरण है। यूहन्ना 6 यह कहकर आरम्भ करता है कि लोग यीशु का अनुसरण कर रहे थे, क्योंकि उन्होंने आश्चर्यकर्म को देखा था। कोई सोचता होगा कि यह अच्छी बात है। यीशु मात्र पाँच रोटियों और दो मछलियों से 5,000 से अधिक पुरुषों और स्त्रियों और बच्चों को बहुतायत के साथ भोजन खिलाता है। फिर, वह रात में उनसे दूर चला जाता है।
अगली सुबह, लोग उसे ढूँढते रहे थे। यीशु, यद्यपि उनसे प्रभावित नहीं हुआ और वह उनका सामना करता, क्योंकि वे उसे अपने स्वार्थी उद्देश्यों के लिए खोज रहे थे: "मैं तुम से सच सच कहता हूँ, तुम मुझे इसलिये नहीं ढूँढ़ते हो कि तुम ने आश्चर्यकर्म देखे, परन्तु इसलिये कि तुम रोटियाँ खाकर तृप्त हुए" (यूहन्ना 6:26)। यहाँ पर कुछ विडम्बना प्रकट की गई है। वे यीशु की खोज इसलिए कर रहे थे, क्योंकि आश्चर्यकर्म के परिणामस्वरूप उन्हें मुफ्त में भोजन खाने को मिला था। कोई सन्देह नहीं कि उन्होंने सोचा कि यह एक बहुत अच्छी व्यवस्था थी। यदि यीशु उन्हें खाना खिलाता रहेगा, तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। यद्यपि, यीशु का कहना था कि उन्होंने वास्तव में "चिन्ह" को नहीं देखा था। उन्होंने आश्चर्यकर्म देखा, तौभी वे रोटियों और मछलियों से आगे बढ़कर कुछ नहीं देख सके थे। यीशु ने जिस "चिन्ह" को प्रगट किया था वह कुछ बड़े को दर्शाता है। यद्यपि एक बड़ी भीड़ ने आश्चर्यकर्म को देखा और इसमें भाग भी लिया, परन्तु उन्होंने उस बात को खो दिया जिसकी ओर यीशु, जो जीवन की रोटी है, संकेत कर रहा था। यीशु की पूरी सेवकाई में, कई लोगों ने उसके आश्चर्यकर्मों को वहीं समाप्त होने से बढ़कर कुछ बड़े होने की ओर संकेत किए जाने को नहीं देखा।
English
यीशु के आश्चर्यकर्म क्या थे? यीशु ने कौन से आश्चर्यकर्म प्रगट किए?