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प्रश्न

सकेत फाटक कितना अधिक संकीर्ण है?

उत्तर


सकेत फाटक, जिसे संकरा द्वार भी कहा जाता है, को मत्ती 7:13-14 और लूका 13:23-24 में प्रभु यीशु के द्वारा सन्दर्भित किया गया है। यीशु सकेत फाटक की तुलना "चौड़े मार्ग" से करता है, जो विनाश (नरक) की ओर ले जाता है और कहता है कि "बहुत से" जो उस मार्ग पर चलेंगे। इसके विपरीत, यीशु कहता है कि "क्योंकि सकेत है वह फाटक और कठिन है वह मार्ग जो जीवन को पहुँचाता है; और थोड़े हैं जो उसे पाते हैं।" इसका सटीक अर्थ क्या है? "कितने" लोग हैं, जो इस पर चल रहे हैं और "थोड़े" कितने हैं, जो इस पर चल रहे हैं?

सबसे पहले, हमें यह समझने की आवश्यकता है कि यीशु द्वार है, जिसके माध्यम से सभों को अनन्त जीवन में प्रवेश करना होगा। कोई दूसरा मार्ग नहीं है, क्योंकि वही एकमात्र "मार्ग, सत्य और जीवन" है (यूहन्ना 14:6)। अनन्त जीवन का मार्ग केवल एक ही व्यक्ति-मसीह तक ही सीमित है। इस अर्थ में, मार्ग संकीर्ण है, क्योंकि यही एकमात्र तरीका है, और अपेक्षाकृत थोड़े लोग ही संकीर्ण द्वार से निकलेंगे। बहुत से लोग परमेश्‍वर तक पहुँचने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग को खोजने का प्रयास करेंगे। वे झूठे धर्म के माध्यम से, या स्वयं के-प्रयास के माध्यम से मानव निर्मित नियमों और रीति-रिवाजों के माध्यम से वहाँ तक पहुँचने का प्रयास करेंगे। ये वे "बहुत" से लोग हैं, जो चौड़े मार्ग के ऊपर चलेंगे जो अनन्त विनाश की ओर जाता है, जबकि भेड़ें अच्छे चरवाहे की आवाज़ को सुनती हैं और अनन्त जीवन के संकीर्ण मार्ग पर उसका अनुसरण करती हैं (यूहन्ना 10:7-11)।

जबकि अपेक्षाकृत थोड़े ही लोग होंगे जो चौड़े मार्ग पर चलने वाले कई लोगों की तुलना में संकीर्ण द्वार से जाएँगे, तौभी ऐसे लोग होंगे जो अच्छे चरवाहे के पीछे चलेंगे। प्रेरित यूहन्ना ने प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में अपने दर्शन में इस भीड़ को देखा था: "इसके बाद मैं ने दृष्‍टि की, और देखो, हर एक जाति और कुल और लोग और भाषा में से एक ऐसी बड़ी भीड़, जिसे कोई गिन नहीं सकता था, श्‍वेत वस्त्र पहिने और अपने हाथों में खजूर की डालियाँ लिये हुए सिंहासन के सामने और मेम्ने के सामने खड़ी है, और बड़े शब्द से पुकारकर कहती है, 'उद्धार के लिये हमारे परमेश्‍वर का, जो सिंहासन पर बैठा है, और मेम्ने का जय-जय कार हो!'" (प्रकाशितवाक्य 7:9-10)।

संकीर्ण द्वार में प्रवेश करना आसान नहीं है। यीशु ने यह स्पष्ट किया जब उसने अपने अनुयायियों को ऐसा करने के लिए "प्रयास" करने का निर्देश दिया था। शब्द "प्रयास" के लिए अनुवाद किया गया यूनानी शब्द एगोनिज़ोमाई है, जिसमें से हम हिन्दी शब्द तड़पना प्राप्त होता है। यहाँ तात्पर्य यह है कि जो लोग संकीर्ण द्वार में प्रवेश करना चाहते हैं, उन्हें संघर्ष और तनाव से होकर ऐसा करना होगा, ठीक वैसे ही जैसे दौड़ता हुआ एक धावक समाप्त होने वाली रेखा की ओर दौड़ने के लिए अपनी सभी मांसपेशियों को कस कर कठोर कर लेता है और अपने सर्वोत्तम प्रयास को उपयोग करता है। परन्तु हमें यहाँ स्पष्ट होना चाहिए। हमारे प्रयास की कोई भी मात्रा हमें नहीं बचाती है; विश्‍वास के उपहार के माध्यम से उद्धार परमेश्‍वर की कृपा से होता है (इफिसियों 2:8-9)। कोई भी प्रयास करके स्वर्ग को नहीं कमाएगा। परन्तु संकीर्ण द्वार में प्रवेश करना अभी भी कठिन है, क्योंकि यह मानवीय घमण्ड के विरोध में, पाप के प्रति हमारे स्वाभाविक प्रेम के लिए और शैतान और संसार के नियन्त्रण के विरोध में है, ये सारे के सारे अनन्त काल के जीवन की खोज में हमारे विरूद्ध युद्धरत् रहते हैं।

प्रवेश करने का प्रयास पश्‍चाताप करने और फाटक में प्रवेश करने के लिए आदेश है और केवल खड़े होने और इसे देखने के लिए के नहीं, इसके बारे में सोचने के लिए, यह शिकायत करने के लिए नहीं कि यह बहुत छोटा या बहुत कठिन या अन्यायपूर्ण रीति से संकीर्ण है। हमें यह नहीं पूछना है कि दूसरे क्यों नहीं प्रवेश कर रहे हैं; हम बहाने बनाने या देरी की कोई आवश्यकता नहीं है। हमें उस गिनती के प्रति चिन्तित नहीं होना चाहिए कि कौन प्रवेश करेगा या कौन नहीं करेगा। हमें आगे बढ़ने और प्रवेश करने के लिए प्रयासरत् रहना हैं! तत्पश्‍चात् हमें दूसरों को उत्साहित करना है कि वे उसमें पहले प्रवेश करें इस से पहले कि बहुत देर हो जाए।

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सकेत फाटक कितना अधिक संकीर्ण है?
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