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प्रश्न

मैं परमेश्‍वर की सुरक्षा कैसे प्राप्त कर सकता हूँ?

उत्तर


मनुष्य के पाप और परिणामस्वरूप आने वाले शाप के कारण जिसने परमेश्‍वर की सृष्टि की पूर्ण रूप से दूषित कर दिया, संसार एक खतरे से भरा हुआ स्थान बन गया है। लोग प्राकृतिक आपदाओं, अपराध, खराब स्वास्थ्य, और इससे भी अधिक कई बातों से प्रतिदिन पीड़ित होते हैं। जीवन की पीड़ा और दु:ख से सुरक्षा प्राप्त करना स्वाभाविक है। क्या बाइबल हमें परमेश्‍वर की सुरक्षा को देने की प्रतिज्ञा करती है, तब जब हम उसके शाश्‍वतकालीन परिवार का भाग बन जाते हैं?

परमेश्‍वर के वचन में ऐसे कई वचन पाए जाते हैं, जो परमेश्‍वर की ओर से शारीरिक सुरक्षा की प्रतिज्ञा करते हुए आभासित होते हैं। उदाहरण के लिए, भजन संहिता 121:3 कहता है कि, "वह तेरे पाँव को टलने न देगा — तेरा रक्षक कभी न ऊँघेगा।" वचन 7 में भजनकार ने घोषणा की है कि, "यहोवा सारी विपत्ति से तेरी रक्षा करेगा — वह तेरे प्राण की रक्षा करेगा।" जैसे ही इस्राएल ने प्रतिज्ञा किए गए देश में प्रवेश किया, परमेश्‍वर ने उससे प्रतिज्ञा की कि वह कभी नहीं छोड़ेगा या उन्हें कभी नहीं त्यागेगा (व्यवस्थाविवरण 31:6)।

प्रथम दृष्टि में, ऐसा प्रतीत होता है कि परमेश्‍वर अपनी सन्तान को किसी भी तरह की हानि से सुरक्षा देने की प्रतिज्ञा करता है। परन्तु यदि ऐसा होता तो पूरे संसार में इतने अधिक मसीही विश्‍वासियों को सताव, बीमारी, हानि, दुर्घटनाओं और क्षति के साथ क्यों संघर्ष करना पड़ता है? हम सभी ऐसे मसीही विश्‍वासियों को जानते हैं जिनके "पैर" "फिसल गए हैं। क्या परमेश्‍वर ने अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ दिया है, या क्या हम कुछ और ही खो रहे हैं?

सबसे पहले, हमें मूसा की व्यवस्था के सन्दर्भ में शारीरिक सुरक्षा के पुराने नियम की प्रतिज्ञा की व्याख्या करनी चाहिए। जब तक इस्राएल की सन्तान वाचा के प्रति आज्ञाकारी रही, परमेश्‍वर ने उन्हें भिन्न तरह की — फसलों, पशुधन, बच्चों इत्यादि के ऊपर विभिन्न सांसारिक और शारीरिक आशीष को देने की प्रतिज्ञा की। (व्यवस्थाविवरण 28)। पुरानी वाचा का सरोकार बहुत अधिक सांसारिक आशीष से था, और उसमें शारीरिक सुरक्षा भी थी। यही हिजकिय्याह की प्रार्थना का आधार था, जब उसे प्राणघातक बीमारी ने जकड़ लिया था (2 राजा 20:1-6)। पूरे के पूरे पुराने नियम के समय में, हम देखते हैं कि परमेश्‍वर अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए अपने लोगों की रक्षा करता है (उदाहरण के लिए, निर्गमन 1:22-2:10; 1 राजा 17:1-6; योना 1)।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि हम नए वाचा के अधीन हैं, पुरानी के नहीं। परमेश्‍वर मसीह में पाए जाने वाले विश्‍वासियों को शारीरिक नुकसान से बचाए रखने की प्रतिज्ञा नहीं करता है। निश्‍चित् रूप से ऐसे समय आते हैं, जब वह हमें अपनी दया भरी ढाल से ऐसी परिस्थितियों से बचाता है, जहाँ हमें क्षति या हानि होने की सम्भावना होती है। प्रेरितों के काम 27 में पौलुस और लूका का टूटे हुए जहाज़ से बच जाना और प्रेरितों के काम 28 में पौलुस का सांप के काटे जाने से बच जाना इसके बारे में उदाहरण हैं। आज, यद्यपि, विश्‍वासियों के लिए परमेश्‍वर की प्रतिज्ञाएँ सामान्य रूप से आत्मिक सुरक्षा के सन्दर्भ में पाई जाती हैं।

जब हम उद्धार के लिए यीशु मसीह में विश्‍वास करते हैं, तो पवित्र आत्मा तुरन्त हमारे जीवन में प्रवेश करता है। हमें अनन्त काल तक के लिए मुहरबन्द कर दिया जाता है और उसी क्षण से हमें परमेश्‍वर की आत्मिक सुरक्षा के अधीन लाया जाता है। इसका अर्थ यह है कि हमारे भविष्य के पापों या शैतान की साजिशों के पश्‍चात् भी, हम कभी भी उद्धार को नहीं खोएंगे, जिसे परमेश्‍वर ने हमें प्रदान किया है (2 तीमुथियुस 1:12)। ऐसा कुछ भी नहीं है, जो हमें कभी परमेश्‍वर के प्रेम से अलग कर सके (रोमियों 8:38-39)। इसके अतिरिक्त, हमें पाप के प्रभुत्व से स्वतन्त्रता दी जाती है — हम अब पाप से भरे हुए विचारों, इच्छाओं और कार्यों के दास नहीं हैं, अपितु नए जीवन की पवित्रता के लिए जन्म लिए हुए हैं (रोमियों 6:22)।

हमारे पूरे जीवन में, परमेश्‍वर "[हमारे] हृदय और [हमारे] विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगा" (फिलिप्पियों 4:7), जो हमें किसी भी परीक्षा या जाँच के द्वारा सामर्थ्य, शान्ति और दृढ़ता प्रदान करने के लिए आवश्यक है। उसका आत्मा हमारे भीतर फल को उत्पन्न करने के लिए वृद्धि करता है, जो मसीह में हमारे जीवन को व्यतीत करने के लिए दृढ़ता प्रदान करेगा (गलतियों 5:22-23), और वह हमें सामर्थी हथियार प्रदान करता है, जिसके साथ हम शत्रु के आत्मिक आक्रमणों को रोक सकते हैं (इफिसियों 6:10-18)।

परमेश्‍वर से शारीरिक सुरक्षा मांगने में कुछ भी गलत नहीं है, जब तक हम महसूस करते हैं कि वह हमें इसे देने में दिखाई नहीं दे रहा है। वह जानता है कि हम हमारे मार्गों में आने वाली परीक्षाओं से दृढ़ होते हैं, और प्रत्येक शारीरिक परीक्षा में, हमें उसकी आत्मिक सुरक्षा का आश्‍वासन दिया जाता है। इसलिए, परमेश्‍वर से पूर्ण शारीरिक सुरक्षा प्राप्त करने की अपेक्षा, हम याकूब के साथ सहमत हो सकते हैं, "हे मेरे भाइयो, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो, तो इसको पूरे आनन्द की बात समझो, यह जानकर कि तुम्हारे विश्‍वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्न होता है" (याकूब 1:2-3)।

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