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प्रश्न

बाइबल स्व-धार्मिकता के बारे में क्या कहती है?

उत्तर


शब्द स्व-धार्मिकता की शब्दकोषीय परिभाषा "एक व्यक्ति का स्वयं की धार्मिकता में विश्‍वास होना है, विशेषकर तब जब दूसरों की सोच और व्यवहार के बारे में नैतिकता और असहिष्णुता होती है।" बाइबल आधारित हो कहना, स्व-धार्मिकता, कर्मकाण्डवाद से सम्बन्धित है, यह ऐसा विचार है कि हम जो कुछ करते हैं, किसी तरह उससे स्वयं के लिए धार्मिकता को उत्पन्न कर सकता है, जो परमेश्‍वर को स्वीकार्य होगी (रोमियों 3:10)। यद्यपि कोई भी गम्भीर मसीही विश्‍वासी इस विचार की त्रुटि को पहचान सकता है, क्योंकि हमारे पाप के स्वभाव के कारण, यह हम सभों के लिए एक निरन्तर प्रलोभन है कि हम स्वयं में, या स्वयं के धर्मी होने में विश्‍वास करें। नए नियम में, यीशु और प्रेरित पौलुस ने उन लोगों के साथ विशेष रूप से कठोरता से बात की, जिन्होंने स्वयं-की-धार्मिकता में जीने का प्रयास किया था।

उस समय के यहूदी अगुवों के साथ व्यवहार करते हुए यीशु ने उनकी स्व-धार्मिकता की निन्दा विशेष रूप से कठोरता के साथ की थी। मत्ती 23 में, यीशु स्वयं को दूसरों से उत्तम बनाने के लिए अपनी व्यवस्था की परम्पराओं का कठोरता से पालन करने के लिए शास्त्रियों और फरीसियों की निन्दा करता है। फरीसी और कर संग्रहकर्ता के दृष्टान्त को विशेष रूप से यीशु ने "उनसे जो अपने ऊपर भरोसा रखते थे, कि हम धर्मी हैं, और दूसरों को तुच्छ जानते थे," (लूका 18:9-14) के लिए कहा था। फरीसी ने अपने कार्यों के आधार पर स्वयं को परमेश्‍वर की ओर से स्वीकृति होना मान लिया था, जबकि कर संग्रह करने वाले ने माना कि उसके पास स्वयं में ऐसा कुछ भी नहीं था जिस से परमेश्‍वर उसे स्वीकार कर सके। सुसमाचारों में निरन्तर, यीशु फरीसियों से टकराता है और सच्ची धार्मिकता के बारे में बता करता है। ठीक उसी समय, वह अपने शिष्यों को स्व-धार्मिकता के खतरों के बारे में चेतावनी देने के लिए बहुत अधिक समय और ऊर्जा खर्च करता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि, वे उसके बिना कुछ नहीं कर सकते थे (यूहन्ना 15:5)।

पौलुस की ओर से भी स्व-धार्मिकता के प्रति व्यवहार यीशु की तुलना में कम तीखा नहीं है। उसने यहूदियों के द्वारा खतने में विश्‍वास करते हुए स्व-धार्मिकता की निन्दा की है (रोमियों 2:17–24) परमेश्‍वर की कृपा के लिए रोमनों में अपना महान तर्क आरम्भ किया। वह अध्याय 10 में इस विषय पर और अधिक, यह कहते हुए लिखता कि यहूदियों ने अपनी धार्मिकता के आधार पर परमेश्‍वर की स्वीकृति प्राप्त करने का प्रयास, परमेश्‍वर की सच्ची धार्मिकता के प्रति अज्ञानता का प्रदर्शन करते हुए किया था (रोमियों 10:3)। उसका निष्कर्ष यह है कि मनुष्य नहीं अपितु मसीह धार्मिकता के लिए व्यवस्था का अन्त है (वचन 4)।

गलातियों की कलीसिया को पौलुस के पत्र ने भी इसी विषय को सम्बोधित किया है। इन विश्‍वासियों के बारे में कहा जा रहा था कि उन्हें परमेश्‍वर के लिए स्वीकार्य होने के लिए विशेष रूप से खतना की आवश्यकता थी। पौलुस तो इस बात यह कहते हुए आगे बढ़ जाता है कि यह एक और ही तरह का सुसमाचार है और जो लोग इसकी वकालत करते हैं, वे "श्रापित" हैं (गलातियों 1:8–9)। अधिक स्पष्ट रूप से, वह अपने पाठकों को बताता है कि, यदि धार्मिकता अपने कार्यों से आ सकती है, तो यीशु "बिना किसी उद्देश्य के" मर गया (गलातियों 2:21) और धार्मिकता "व्यवस्था के द्वारा" आ सकती है (गलातियों 3:21)। गलातियों के विश्‍वासियों के बारे में पौलुस का निष्कर्ष यह था कि वे शरीर से सिद्ध होने के अपने प्रयास में मूर्ख थे (गलातियों 3:1-3)।

मसीही विश्‍वासी इस स्वभाव से जूझते रहते हैं। अपने उद्धार की प्राप्ति के लिए कुछ करने का प्रयास करना हमारे पापी स्वभाव में है। अनुग्रह की महँगी स्वतन्त्रता, जो हमारे बिना योगदान के यीशु के लहू द्वारा हमारे लिए खरीदी गई, का हमारे घमण्डी मनों के लिए समझना या सराहना करना कठिन है। स्वयं की एक दूसरे के साथ तुलना करना, इस पहचान के लिए आसान है कि हम एक पवित्र परमेश्‍वर के मापदण्डों को पूरा नहीं सकते हैं। तथापि, मसीह में हम सच्ची धार्मिकता को जान सकते हैं। मसीह में, हम अनुग्रह के माध्यम से हमारे पास आने वाले पाप की क्षमा को जान सकते हैं। क्योंकि वह हमारे स्थान पर खड़ा था, हम उसके पाप रहित जीवन और उसके पाप-को उठा ले जाने वाली मृत्यु (2 कुरिन्थियों 5:21) से लाभ उठाते हैं। उसके बलिदान के कारण, हम अपने पाप का सामना कर सकते हैं और उसे क्रूस पर ला सकते हैं, इसकी अपेक्षा कि किसी तरह परमेश्‍वर के लिए पर्याप्त रीति से सिद्ध होने का प्रयास किया जाए। केवल क्रूस में ही हम उसके अनुग्रह को देख सकते हैं, जो हमारे सभी पापों को ढक देता है और हमारे मनों में पाई जाने वाली स्व-धार्मिकता की प्रवृत्ति को निरन्तर पराजित करता है।

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