प्रश्न
मनुष्य के प्राण कैसे रचे गए?
उत्तर
मनुष्य के प्राण की रचना कैसे होती है, के ऊपर बाइबल आधारित दो व्यावहारिक दृष्टिकोण पाए जाते हैं। देहात्मसहजननवाद सिद्धान्त के अनुसार एक प्राण भौतिक शरीर के साथ भौतिक माता पिता के द्वारा उत्पन्न होता है। देहात्मसहजननवाद के समर्थन में ये बातें पाई जाती हैं: (अ) उत्पत्ति 2:7 में, परमेश्वर ने जीवन के श्वास को आदम में फूँक दिया, जिसके कारण वह एक "जीवित प्राणी" बन गया। पवित्रशास्त्र और कहीं भी ऐसा लिपिबद्ध नहीं करती है कि परमेश्वर ने इस कार्य को फिर दुबारा किया। (ब) आदम का पुत्र उसकी समानता में उसके स्वरूप के अनुसार उत्पन्न हुआ (उत्पत्ति 5:3)। ऐसा जान पड़ता है कि आदम के वंशज् परमेश्वर के द्वारा श्वास फूँके बिना ही "जीवित प्राणी" बन गए थे। (स) उत्पत्ति 2:2-3 इस संकेत का आभास देता है कि परमेश्वर ने उसकी सृष्टि के कार्य को पूरा कर लिया था। (द) आदम के पाप ने सारी मानवजाति को — दोनों अर्थात् शारीरिक और आत्मिक रीति से प्रभावित किया था — यह तब अर्थ देता है यदि शरीर और प्राण दोनों ही माता पिता से आए हुए हों। देहात्मसहजननवाद की कमजोरी यह है कि यह स्पष्ट नहीं करता कि कैसे एक अभौतिक आत्मा पूर्ण रीति से एक भौतिक प्रक्रिया के माध्यम से उत्पन्न हो सकती है। देहात्मसहजननवाद केवल तभी सत्य हो सकता है यदि शरीर और प्राण एक दूसरे के साथ अतुलनीय रूप से जुड़े हुए हों।
सृष्टिवाद वह दृष्टिकोण है जिसके अनुसार परमेश्वर एक नए प्राण को तब रचता है जब एक व्यक्ति का गर्भधारण होता है। सृष्टिवाद आरम्भिक कलीसियाई धर्माचार्य के द्वारा स्वीकार किया गया है और साथ ही इसके पवित्रशास्त्रीय आधार पाए जाते हैं। प्रथम, पवित्रशास्त्र शरीर की उत्पत्ति को प्राण की उत्पत्ति से भिन्न करता है (सभोपदेशक 12:7; यशायाह 42:5; जकर्याह 12:1; इब्रानियों 12:9)। दूसरा, यदि परमेश्वर प्रत्येक व्यक्ति के प्राण को उस क्षण रचता है जब इसकी आवश्यकता होती है, तब प्राण और आत्मा का एक दूसरे से अलगाव दृढ़ता से पाया जाता है। सृष्टिवाद की कमजोरी यह है कि इसमें परमेश्वर निरन्तर नए मानवीय प्राणों की रचना करते जा रहा है, जबकि उत्पत्ति 2:2-3 संकेत देता है कि परमेश्वर ने सृष्टि के कार्य को समाप्त कर लिया है। इसी के साथ, अभी तक का पूरा मानवीय अस्तित्व — शरीर, प्राण और आत्मा — पाप से प्रभावित है और परमेश्वर यदि परमेश्वर प्रत्येक मानवीय प्राणी का नया प्राण रचता है, तब यह कैसे हो सकता है कि वह प्राण तब पाप से प्रभावित है।
एक तीसरा दृष्टिकोण, परन्तु इसके पास बाइबल आधारित आधार नहीं हैं, यह अवधारणा है कि परमेश्वर ने सभी मानवीय प्राणियों को एक ही समय में रच दिया था, और वह गर्भधारण के समय मनुष्य के प्राण को उसमें "जोड़" देता है। इस दृष्टिकोण के अनुसार स्वर्ग में एक तरह "प्राणों का भण्डारगृह" है जहाँ पर परमेश्वर प्राणों का भण्डारण करता है जो मानवीय शरीर के साथ जुड़ने के लिए प्रतीक्षारत् हैं। एक बार फिर से, इस दृष्टिकोण के पवित्रशास्त्रीय आधार नहीं पाए जाते हैं, और इसे अक्सर "नए युगवादियों" या पुनर्जन्म में विश्वास करने वाले के द्वारा माना जाता है।
चाहे देहात्मसहजननवाद दृष्टिकोण हो या फिर सृष्टिवादी दृष्टिकोण दोनों में कोई भी सही क्यों न हों, पर दोनों इस बात पर सहमत हैं कि प्राणों का गर्भधारण से पहले अस्तित्व में नहीं है। यही बाइबल की स्पष्ट शिक्षा जान पड़ती है। परमेश्वर गर्भधारण के समय एक नए मानवीय प्राण की रचना करता है, या फिर उसने मानव प्रजनन की प्रक्रिया को भी एक प्राण को पुनरुत्पादित करने के लिए रूपरेखित किया है, परमेश्वर ही अन्त में सृष्टि की प्रत्येक वस्तु और प्रत्येक मानवीय प्राण की रचना के लिए उत्तरदायी है।
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मनुष्य के प्राण कैसे रचे गए?