होशे की पुस्तक
लेखक : होशे 1:1 होशे की पुस्तक पुस्तक के लेखक को भविष्यद्वक्ता होशे के होने के रूप में करती है। होशे का परमेश्वर की सन्तान और संसार को दी हुए भविष्यद्वाणियों के सन्देश का यह व्यक्तिगत् वृतान्त है। होशे ही इस्राएल का एकमात्र ऐसा भविष्यद्वक्ता है, जिसने अपने लेखनकार्यों को ऐसे छोड़ा कि जो उसके जीवनकाल में अन्तिम वर्षों में ही लिपिबद्ध कर दिए गए थे।लेखन तिथि : बेरी के पुत्र होशे ने 785 और 725 ईसा पूर्व में कुछ समय के लिए भविष्यद्वाणी की थी। इसलिए होशे की पुस्तक का 755 और 725 ईसा पूर्व में किसी समय लिखे जाने की सम्भावना है।
लेखन का उद्देश्य : होशे ने इस पुस्तक को इस्राएलियों — और हमें — यह स्मरण दिलाने के लिए लिखा कि हमारा परमेश्वर प्रेमी परमेश्वर है, जिसकी निष्ठा उसके साथ वाचा बाँधे हुए लोगों के प्रति अटल है। इस्राएल के द्वारा निरन्तर झूठे देवताओं की ओर मुड़ते रहने के पश्चात् भी, परमेश्वर का अटल प्रेम एक लम्बे-समय तक अविश्वासी पत्नी के लिए दु:ख उठाने वाले पति के चित्रण में प्रस्तुत किया गया है। होशे का सन्देश साथ ही उन लोगों के प्रति चेतावनी के रूप में भी हैं, जो अपने मुँह को परमेश्वर के प्रेम से मोड़ लेते हैं। होशे और गोमेर के विवाह के चिन्हात्मक प्रस्तुतिकरण के द्वारा, परमेश्वर का मूर्तिपूजक इस्राएल जाति के प्रति पाप, न्याय और क्षमा करने वाले प्रेम के सम्बद्ध रूपक में प्रदर्शित किया गया है।
कुँजी वचन : होशे 1:2, "जब यहोवा ने होशे के द्वारा पहले पहिल बातें कीं, तब उसने होशे से यह कहा, 'जाकर एक वेश्या को अपनी पत्नी बना ले, और उसके कुकर्म के बच्चों को अपने बच्चे कर ले, क्योंकि यह देश यहोवा के पीछे चलना छोड़कर वेश्या का सा बहुत काम करता है।'"
होशे 2:23, "मैं अपने लिये उसे देश में बोऊँगा, और लोरूहामा पर दया करूँगा, और लोअम्मी से कहूँगा, तू मेरी प्रजा है, और वह कहेगा, 'हे मेरे परमेश्वर।'"
होशे 6:6, "क्योंकि मैं बलिदान से नहीं, स्थिर प्रेम ही से प्रसन्न होता हूँ, और होमबलियों से अधिक यह चाहता हूँ कि लोग परमेश्वर का ज्ञान रखें।
होशे 14:2-4, "बातें सीखकर और यहोवा की ओर लौटकर, उससे कह, 'सब अधर्म दूर कर; अनुग्रह से हम को ग्रहण कर; तब हम धन्यवाद रूपी बलि चढ़ाएँगे।' अश्शूर हमारा उद्धार न करेगा, हम घोड़ों पर सवार न होंगे; और न हम फिर अपनी बनाई हुई वस्तुओं से कहेंगे, 'तुम हमारे ईश्वर हो;' क्योंकि अनाथ पर तू ही दया करता है।" "मैं उनकी भटक जाने की आदत को दूर करूँगा; मैं सेंतमेंत उन से प्रेम करूँगा, क्योंकि मेरा क्रोध उन पर से उतर गया है।"
संक्षिप्त सार : होशे की पुस्तक को दो खण्डों में विभाजित किया जा सकता है : (1) होशे 1:1-3:5 एक व्यभिचारी पत्नी और एक विश्वासयोग्य पति का, चिन्हात्मक रूप से इस्राएल का मूर्तिपूजा के द्वारा परमेश्वर की ओर मुड़ जाने का चित्रण है, और (2) होशे 3:6-14:9 में इस्राएल, विशेष रूप से सामरिया की उनके द्वारा मूर्तियों की पूजा करने और अन्त में उनकी पुनर्स्थापना अर्थात् बहाली के प्रति निन्दा सम्मिलित है
पुस्तक के पहले खण्ड में तीन विशेष कविताएँ मिलती हैं, जो यह प्रदर्शित करती हैं, कि कैसे परमेश्वर की सन्तान मूर्तिपूजा करने के कुछ समय पश्चात् उसकी ओर लौट आएगी। परमेश्वर होशे को गोमेर के साथ विवाह करने के लिए आदेश देता है, परन्तु तीन बच्चों के हो जाने के पश्चात्, वह होशे को छोड़ अपने प्रेमी के पास वापस लौट जाती है। इसे प्रतीकात्मक रूप में बड़ी स्पष्टता के साथ प्रथम अध्याय में देखा जा सकता है जब होशे इस्राएल के कार्यों की तुलना वैवाहिक जीवन को छोड़ते हुए वेश्या के जीवन को अपनाने के साथ करता है। दूसरे खण्ड में होशे के द्वारा इस्राएल की भर्त्सना मिलती है, परन्तु इसके पश्चात् परमेश्वर की दया और प्रतिज्ञाएँ पाई जाती हैं।
होशे की पुस्तक उसकी सन्तान के लिए परमेश्वर के अथक प्रेम की एक भविष्यद्वाणी का लेखांकन है। क्योंकि समय के आरम्भ से ही परमेश्वर की कृतघ्न और अयोग्य सृष्टि अपनी दुष्टता से दूर रहने में असमर्थ रहने पर भी परमेश्वर के प्रेम, दया, और दया को ग्रहण कर रही है।
होशे का अन्तिम खण्ड यह दिखाता है, कि परमेश्वर का प्रेम कैसे एक बार फिर से उसकी सन्तान में पुनर्स्थापित अर्थात् बहाल किया जाता है, जब वे एक पश्चातापी मन के साथ उसकी ओर मुड़ आते हैं, तो वह उनके गलत कार्यों को भूल जाता है। होशे का भविष्यद्वाणी से भरा हुआ सन्देश इस्राएल के भविष्य में 700 वर्षों के पश्चात् आने वाले मसीह के लिए पूर्वकथन है। होशे को अक्सर नए नियम में उद्धृत किया गया है।
प्रतिछाया : होशे 2:23 मसीह परमेश्वर की ओर से आने वाले भविष्यद्वाणी के अद्भुत सन्देश हैं, जिनमें परमेश्वर की सन्तान के रूप में अन्यजातियों [गैर-यहूदियों] जैसे की रोमियों 9:25 और 1 पतरस 2:10 में सम्मिलित किया गया है, को लेखांकित करता है। अन्यजातियाँ मूल रूप से "परमेश्वर के लोग" नहीं हैं, परन्तु उसकी दया और अनुग्रह के कारण, उसे यीशु मसीह का प्रबन्ध किया, और उसमें विश्वास करने के द्वारा हम उसके लोगों के वृक्ष में रोपित किए जाते हैं (रोमियों 11:11-18)। यह कलीसिया के बारे में एक अद्भुत सत्य है, वह जिसे इसलिए "रहस्य" कह कर पुकारा गया है, क्योंकि मसीह के आगमन से पहले, परमेश्वर के लोगों के रूप में केवल यहूदियों को ही स्वीकार किया जाता था। जब मसीह आया, तब यहूदियों को अस्थाई रूप से तब तक अन्धा कर दिया गया "जब तक अन्यजातियाँ पूरी रीति से प्रवेश न कर लें" (रोमियों 11:25)।
व्यवहारिक शिक्षा : होशे की पुस्तक हमें उसके लोगों के प्रति परमेश्वर के शर्तहीन प्रेम के प्रति सुनिश्चित कर देती है। परन्तु यह साथ ही इस बात का भी चित्रण है, कि परमेश्वर कैसे उसकी सन्तान के कार्यों के द्वारा अनादर प्राप्त करता और क्रोधित हो जाता है। कैसे एक सन्तान, जिसे बहुतायत के साथ प्रेम, दया और अनुग्रह प्रदान किया गया है, एक पिता के साथ बहुत अधिक अनादर भरा व्यवहार कर सकता है? तथापि, हमने ऐसा बीती हुई सदियों में किया है। जब हम इस बात पर ध्यान देते हैं, कि कैसे इस्राएलियों ने अपने मुँह को परमेश्वर की ओर से फेर लिया था, तब हमें इसके अधिक आगे बढ़ते हुए, स्वयं के चेहरे को दर्पण में देखने की आवश्यकता है, जहाँ हम यह पाएँगे कि हम भी उन इस्राएलियों के जैसे ही हैं।
केवल यही स्मरण रखने से कि परमेश्वर ने हम में से प्रत्येक के लिए कितना कुछ किया है, हमें उसका इन्कार करने से बचाव प्रदान करेगा जिसने हमें जो नरक के योग्य थे, की अपेक्षा शाश्वतकाल की महिमा को प्रदान किया है। यह आवश्यक है कि हम हमारे सृष्टिकर्ता का आदर करना सीखें। होशे हमें यही दिखाता है कि जब हम गलती करते हैं, यदि हमारे पास एक उदासी से भरा हुआ हृदय और पश्चाताप की प्रतिज्ञा है, परिणामस्वरूप, परमेश्वर एक बार फिर से हमें उसके न-समाप्त होने वाले प्रेम को दिखाता है (1 यूहन्ना 1:9)।
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