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विलापगीत की पुस्तक

लेखक : विलापगीत की पुस्तक स्पष्ट रूप से अपने लेखक की पहचान नहीं करती है। परम्परा के अनुसार भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह के द्वारा विलापगीत की पुस्तक को लिखा हुआ माना गया है। इस दृष्टिकोण की सम्भावना पर अधिक ध्यान दिए जाने का कारण यह है, कि बेबीलोन के द्वारा यरूशलेम के नष्ट होने में लेखक एक गवाह के रूप में वहाँ उपस्थित था। यिर्मयाह इस योग्यता को पूरा करता है (2 इतिहास 35:25; 36:21-22)।

लेखन तिथि : एस्तेर की पुस्तक को 586 और 575 ईसा पूर्व में यरूशलेम के पतन के शीघ्र पश्चात् या मध्य में किसी समय लिखे जाने की सम्भावना पाई जाती है।

लेखन का उद्देश्य : यहूदा के निरन्तर और मूर्तिपूजा के प्रति पश्चातापहीन होने के परिणाम स्वरूप, परमेश्‍वर ने बेबीलोन को यरूशलेम के नगर को चारों ओर से घेरने, लूटने, जला देने और अन्त में नष्ट करने की अनुमति दे दी। सुलैमान का मन्दिर, जो वहाँ पर लगभग 400 वर्षों से खड़ा हुआ था, को जला कर नष्ट कर दिया गया। भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह, इन घटनाओं का आँखों देखा गवाह था, परिणामस्वरूप जो कुछ यहूदा और यरूशलेम में घटित हुआ था, उसके प्रति उसके विलाप के रूप में विलापगीत की पुस्तक को लिखा।

कुँजी वचन : विलापगीत 2:17, "यहोवा ने जो कुछ ठान लिया था वही किया भी है, जो वचन वह प्राचीनकाल से कहता आया है वही उस ने पूरा भी किया है; उस ने निष्ठुरता से तुझे ढा दिया है, उस ने शत्रुओं को तुझ पर आनन्दित किया, और तेरे द्रोहियों के सींग को ऊँचा किया है।"

विलापगीत 3:22-23, "हम मिट नहीं गए; यह यहोवा की महाकरूणा का फल है, क्योंकि उसकी दया अमर है। प्रति भोर वह नई होती रहती है; तेरी सच्चाई महान है।"

विलापगीत 5:19-22, "परन्तु हे यहोवा, तू तो सदा तक विराजमान रहेगा; तेरा राज्य पीढ़ी-पीढ़ी बना रहेगा। तू ने क्यों हम को सदा के लिये भुला दिया है, और क्यों बहुत काल के लिये हमें छोड़ दिया है? हे यहोवा, हम को अपनी ओर फेर, तब हम फिर सुधर जाएँगे। प्राचीनकाल के समान हमारे दिन बदलकर ज्यों के त्यों कर दे ! क्या तू ने हमें बिल्कुल त्याग दिया है? क्या तू हम से अत्यन्त क्रोधित है?"

संक्षिप्त सार : विलापगीत की पुस्तक पाँच अध्यायों में विभाजित है। प्रत्येक अध्याय एक पृथक कविता को प्रस्तुत करती है। मूल इब्रानी भाषा में इसके वचन अक्षरबद्ध कविता के रूप में हैं, अर्थात् प्रत्येक वचन इब्रानी वर्णमाला में एक के पश्चात् आने वाले दूसरे अक्षर से आरम्भ होता है। विलापगीत की पुस्तक में, भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह समझता है, कि बेबीलोन के लोग यरूशलेम के ऊपर परमेश्‍वर के दण्ड को लाने के लिए एक हथियार के रूप में उपयोग हुए थे (विलापगीत 1:12-15; 2:1-8; 4:11)। विलापगीत स्पष्ट करता है, कि पाप और विद्रोह वे कारण थे, जिसके परिणामस्वरूप परमेश्‍वर का कोप उण्डेल दिया गया (1:8-9; 4:13; 5:16)। विलापगीत व्यथा के समय में उचित है, परन्तु इसके स्थान को शीघ्रता के साथ टूटा हुआ मन और पश्चाताप को ले लेना चाहिए (विलापगीत 3:40-42; 5:21-22)।

प्रतिछाया : यिर्मयाह को उसके लोगों और नगर के लिए उसके गहन और स्थाई उत्साह के साथ रोने वाला भविष्यद्वक्ता के रूप में जाना जाता है (विलापगीत 3:48-49)। लोगों के पापों और परमेश्‍वर को त्यागने के कारण इसी तरह की उदासी को यीशु के द्वारा व्यक्त किया था, जब वह यरूशलेम के पास पहुँचा था और उसने इसके नाश को रोमियों के हाथों से होने को देख लिया था (लूका 19:41-44)। यीशु को अपना मसीह मनाने से इन्कार कर देने के कारण, परमेश्‍वर ने रोमियों को उसके लोगों को दण्डित करने के लिए उपयोग किया। परन्तु परमेश्‍वर उसके सन्तान को दण्डित करने के आनन्दित नहीं होता है और वह इसलिए उसने यीशु मसीह को उनके पापों के लिए उसके लोगों के ऊपर अपनी महान् दया को दिखाने के लिए देते हुए प्रबन्ध किया। मसीह के कारण, एक दिन परमेश्‍वर हमारे सभी आँसुओं को पोंछ डालेगा (प्रकाशितवाक्य 7:17)।

व्यवहारिक शिक्षा : यहाँ तक कि गम्भीर दण्ड के समय भी, परमेश्‍वर आशा का परमेश्‍वर है (विलापगीत 3:24-25)। यह बात इतना अधिक अर्थ नहीं रखती है, कि हम उससे चाहे कितनी ही दूर क्यों न चले गए हों, हमारे पास यह आशा है, कि हम उसके पास वापस लौट सकते हैं और उससे क्षमा और तरस को प्राप्त कर सकते हैं (1 यूहन्ना 1:9)। हमारा परमेश्‍वर प्रेमी परमेश्‍वर है (विलापगीत 3:22), और अपने महान् प्रेम और तरस के कारण, उसने अपने पुत्र को इसलिए भेज दिया ताकि हम अपने पापों में ही न मर जाएँ, अपितु उसके साथ शाश्‍वतकाल तक रह सकते हैं (यूहन्ना 3:16)। परमेश्‍वर की विश्‍वासयोग्यता (विलापगीत 3:23) और छुटकारा (विलापगीत 3:26) ऐसे गुण हैं, जो हमें बड़ी आशा और सांत्वना प्रदान करते हैं। वह एक उदासीन, स्वेच्छाचारी देवता नहीं है, अपितु ऐसा परमेश्‍वर है, जो उन सभों को छुटकारा प्रदान करता है, जो उसकी ओर मुड़ते, यह स्वीकार करते हैं, कि वे उसकी कृपा को प्राप्त करने के लिए स्वयं से कुछ नहीं कर सकते हैं और परमेश्‍वर की दया को पाने के लिए पुकारते हैं ताकि हम नाश न हो जाएँ (विलापगीत 3:22)।



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