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यहूदा की पुस्तक

लेखक : यहूदा की पुस्तक में यहूदा वचन 1 इसके लेखक की पहचान यहूदा, याकूब के एक भाई के रूप में करती है। यह सम्भवत: यहूदा को यीशु का आधा-भाई होने की ओर संकेत करता है, क्योंकि यीशु का आधा-भाई भी था, जिसका नाम यहूदा था (मत्ती 13:55)। सम्भवत: यहूदा स्वयं की पहचान मसीह के प्रति नम्रता और श्रद्धा के कारण उसके आधा-भाई होने के रूप में नहीं करता है।

लेखन तिथि : यहूदा की पुस्तक बड़ी निकटता के साथ 2 पतरस की पुस्तक के साथ सम्बन्धित है। यहूदा की पुस्तक के लेखन की तिथि इस बात पर निर्भर करती है कि क्या उसने 2 पतरस की विषय वस्तु का उपयोग किया, या कहीं पतरस ने यहूदा की विषय वस्तु को उपयोग किया था। यहूदा की पुस्तक 60 और 80 ईस्वी सन् के मध्य में किसी समय लिखा गई थी।

लेखन का उद्देश्य : यहूदा की पुस्तक हमारे लिए आज के समय में एक महत्वपूर्ण पुस्तक इसलिए है, क्योंकि यह अन्त के समयों के लिए, कलीसिया के युग के अन्त के लिए लिखी गई है। कलीसियाई युग का आरम्भ पिन्तेकुस्त के दिन आरम्भ हुआ था। यहूदा ही मात्र एक ऐसी पुस्तक है, जो बड़े धर्मत्याग के विषय की चर्चा करती है। यहूदा लिखता है कि बुरे कार्य धर्मत्याग के प्रमाण हैं। वह हमें विश्‍वास के लिए संघर्ष करने का परामर्श देता है, क्योंकि गेहूँ के मध्य में ऊँटकटारे भी होते हैं। झूठे शिक्षक कलीसिया में हैं और सन्तजन खतरे में हैं। यहूदा एक छोटी सी परन्तु अध्ययन के लिए अति मूल्यवान् पुस्तक है, जिसके आज की मसीहियत के लिए लिखा गया है।

कुँजी वचन : यहूदा 3: "हे प्रियो, जब मैं तुम्हें उस उद्धार के विषय में लिखने में अत्यन्त परिश्रम से प्रयत्न कर रहा था जिसमें हम सब सहभागी हैं; तो मैं ने तुम्हें यह समझाना आवश्यक जाना कि उस विश्‍वास के लिये पूरा यत्न करो जो पवित्र लोगों को एक ही बार सौंपा गया था।"

यहूदा 17-19: "पर हे प्रियो, तुम उन बातों को स्मरण रखो जो हमारे प्रभु यीशु मसीह के प्रेरित पहले ही कह चुके हैं। वे तुम से कहा करते थे, 'पिछले दिनों में ऐसे ठट्ठा करनेवाले होंगे जो अपनी अभक्ति के अभिलाषाओं के अनुसार चलेंगे।' ये वे हैं, जो फूट डालते हैं; ये शारीरिक लोग हैं, जिनमें आत्मा नहीं।"

यहूदा 24-25: "अब जो तुम्हें ठोकर खाने से बचा सकता है, और अपनी महिमा की भरपूरी के सामने मगन और निर्दोष करके खड़ा कर सकता है — उस एकमात्र अद्वैत परमेश्‍वर हमारे उद्धारकर्ता की महिमा और गौरव और पराक्रम और अधिकार, हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा जैसा सनातन काल से है, अब भी हो और युगानुयुग रहे। आमीन।"

संक्षिप्त सार : वचन 3 के अनुसार, यहूदा हमारे उद्धार के बारे में लिखने के लिए चिन्तित था; तथापि, वह अपने विषय को परिवर्तित करते हुए विश्‍वास के लिए संघर्ष करने को सम्बोधित करता है। विश्‍वास मसीह द्वारा दी गई मसीही विश्‍वास के धर्मसिद्धान्तों के पूर्ण समूह का प्रतीक है, जिस बाद में प्रेरितों को दे दिया गया था। झूठे शिक्षकों के प्रति चेतावनी देने के पश्चात् (वचन 4-16) वह हमें परामर्श देता है कि हम कैसे आत्मिक युद्ध में सफल हो सकते हैं (वचन 20-21)। यहाँ पर वह बुद्धि दी गई है जिसे हमें अच्छी रीति से स्वीकार करना चाहिए और इन अन्तिम दिनों में जीवन यापन करने के लिए इसका अनुसरण करना चाहिए।

सम्पर्क : यहूदा की पुस्तक पुराने नियम के संदर्भों से भरी हुई है, जिसमें निर्गमन (वचन 5); शैतान का विद्रोह (वचन 6); सदोम और अमोरा (वचन 7); मूसा की मृत्यु (वचन 9); कैन (वचन 11); बिलाम (वचन 11); कोरह (वचन 11); हनोक (वचन 14,15); और आदम (वचन 14) इत्यादि सम्मिलित हैं। यहूदा के द्वारा सदोम और अमोरा, कैन, बिलाम, और कोरह के जाने-पहचाने ऐतिहासिक दृष्टान्तों का उपयोग यहूदी मसीही विश्‍वासियों को सच्चे विश्‍वास और आज्ञाकारिता की आवश्यकता का स्मरण दिलाता है।

व्यवहारिक शिक्षा : हम इतिहास के एक विशेष समय में रह सकते हैं और यह छोटी पुस्तक हमें अन्य के समयों में जीवन यापन करते समय आने वाली न कही हुई चुनौतियों के लिए सुसज्जित करने के लिए सहायता प्रदान कर सकती है। आज के मसीही विश्‍वासियों को झूठे धर्मसिद्धान्तों से स्वयं की सुरक्षा करनी चाहिए जो यदि हम वचन में अच्छी रीति से पारंगत नहीं तो हमें बड़ी आसानी से धोखा दे सकती हैं। हमें सुसमाचार को जानने — स्वयं की सुरक्षा और बचाव के लिए जानने — और मसीह के प्रभुत्व को स्वीकार करने की आवश्यकता है, जो एक परिवर्तित-जीवन के द्वारा प्रमाणित हो जाता है। प्रामाणिक विश्‍वास सदैव मसीह-जैसे व्यवहार को प्रदर्शित करता है। मसीह में हमारा जीवन हमारे अपने मन के ज्ञान को प्रदर्शित करना चाहिए जो कि सर्वसामर्थी सृष्टिकर्ता और पिता के अधिकार के ऊपर निर्भर है, जो विश्‍वास को अभ्यास में लाने के लिए डाल देता है। हमें उसके साथ इसी व्यक्तिगत् सम्बन्ध की आवश्यकता है, केवल तब ही हमें उसकी आवाज को इतनी अच्छी तरह जान सकते हैं कि हम किसी और का अनुसरण नहीं करेंगे।



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