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रूत

लेखक : रूत की पुस्तक विशेष रूप से इसके लेखक के नाम को नहीं बताती है। परम्परा के अनुसार रूत की पुस्तक भविष्द्वक्ता शमूएल के द्वारा लिखी गई थी।

लेखन तिथि : रूत की पुस्तक के लिखे जाने की सटीक तिथि अनिश्चित है। तथापि, प्रचलित दृष्टिकोण 1011 और 931 ईसा पूर्व में किसी समय लिखे जाने का पाया जाता है।

लेखन का उद्देश्य : रूत की पुस्तक इस्राएलियों के लिए लिखी गई थी। यह शिक्षा देती है, कि वास्तविक प्रेम को प्रदर्शित करने के लिए कई बार समझौते न किए जाने वाले बलिदान में प्रगट किए जाने की आवश्यकता पड़ती है। हमारे जीवन में चाहे कुछ भी क्यों न आए, हम परमेश्‍वर प्रदत्त धर्मोपदेश के अनुसार जीवन व्यतीत कर सकते हैं। वास्तविक प्रेम और दया को प्रतिफल दिया जाएगा। परमेश्‍वर बहुतायत के साथ उन लोगों को आशीषित करता है, जो आज्ञाकारिता के भरे हुए जीवन को व्यतीत करने की चाह रखते हैं। परमेश्‍वर की योजना में आज्ञाकारी जीवन व्यतीत करने के लिए "दुर्घटनाओं" के होने की कोई अनुमति नहीं पाई जाती है। परमेश्‍वर दया पाने वाले लोगों के प्रति अपनी दया को विस्तारित करता है।

कुँजी वचन : रूत 1:16, "रूत बोली, 'तू मुझ से यह विनती न कर, कि मुझे त्याग या छोड़कर लौट जा; क्योंकि जिधर तू जाए उधर मैं भी जाऊँगी; जहाँ तू टिके वहाँ मैं भी टिकूँगी; तेरे लोग मेरे लोग होंगे और तेरा परमेश्‍वर मेरा परमेश्‍वर होगा।"

रूत 3:9, "'उस ने पूछा, तू कौन है?' तब वह बोली, 'मैं तो तेरी दासी रूत हूँ, तू अपनी दासी को अपनी चादर ओढ़ा दे, क्योंकि तू हमारी भूमि छुड़ानेवाला कुटुम्बी है।'"

रूत 4:17, "और उसकी पड़ोसिनों ने यह कहकर, 'नाओमी के एक बेटा उत्पन्न हुआ है, लड़के का नाम ओबेद रखा। यिशै का पिता और दाऊद का दादा वही हुआ।'"

संक्षिप्त सार : रूत की पुस्तक की रूपरेखा का आरम्भ मोआब नामक मूर्तिपूजक देश से आरम्भ होता है, जो कि मृतक सागर के उत्तरपूर्व का एक क्षेत्र है, परन्तु तब यह बैतलहम की ओर मुड़ जाता है। इसका सच्चा वृतान्त इस्राएलियों के विद्रोह और असफलता से भरे हुए दिनों के मध्य में घटित होती हुई घटनाओं में पाया जाता है, जिसे न्यायियों की अवधि कह कर पुकारा जाता है। एक अकाल एलीमेलेक और उसकी पत्नी नाओमी को, इस्राएलियों की जन्मभूमि से मोआब देश की ओर जाने को मजबूर कर देता है। ऐलीमेलेक शीघ्र ही मर जाता है और नाओमी और उसके दो पुत्र बचे रहे जाते हैं, जो दो मोआबी लड़कियों, ओर्पा और रूत से विवाह करते हैं। थोड़े समय पश्चात् उसके दोनों पुत्र भी मर जाते हैं, और नाओमी ओर्पा और रूत के साथ एक अन्जान भूमि में अकेली रह जाती है। ओर्पा उसके माता-पिता के पास लौट आती है, परन्तु रूत भी जब नाओमी बैतलहम की ओर यात्रा करती है, तो उसके साथ ही रहने का निर्णय लेती है। प्रेम और प्रतिबद्धता से भरी हुई यह कहानी हमें बताती है, कि रूत का अन्त में विवाह बोआज नाम के एक धनी पुरूष के साथ हो जाता है, जिसके द्वारा वह एक पुत्र, ओबेद को जन्म देती है, जो दाऊद का दादा और यीशु का पूर्वज बन जाता है। रूत की आज्ञाकारिता उसे मसीह के सौभाग्यशाली वंश का हिस्सा बना देती है।

प्रतिछाया : रूत की पुस्तक का मुख्य विषय निकट कुटम्बी-उद्धारक का है। बोआज, रूत का उसके पति की ओर से एक सम्बन्धी है, जो मूसा की व्यवस्था में उल्लेखित विधान के अनुसार अपने दायित्व को उसके सम्बन्धी को परिस्थितियों के कारण निर्धन हो जाने पर छुटकारा प्रदान करता है (लैव्यव्यस्था 25:47-49)। इसी दृश्य का दुहराव मसीह के द्वारा किया गया है, जो हमें छुटकारा प्रदान करता है, हम जो आत्मिक रीति से पाप के दासत्व के कारण निर्धन हो चुके हैं। हमारा स्वर्गीय पिता अपने स्वयं के पुत्र को क्रूस के ऊपर मरने के लिए भेज देता है, ताकि हम परमेश्‍वर की सन्तान और मसीह के भाई और बहिन बन जाएँ। हमारे उद्धारक होने के नाते, हम उसके सम्बन्धी बन जाते हैं।

व्यवहारिक शिक्षा : रूत की कहानी में हमारे महान् परमेश्‍वर की प्रभुता बड़ी स्पष्टता के साथ दिखाई देती है। वही उसके प्रत्येक कदम को उस मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन देता है, कि वह उसकी सन्तान बन जाए और यीशु मसीह की पूर्वज बनने के लिए उसके प्रति उसकी योजना को पूर्ण करे (मत्ती 1:5)। ठीक इसी तरह से, हमें यह आश्‍वासन प्राप्त है, कि परमेश्‍वर की योजना हम में से प्रत्येक के लिए है। ठीक वैसे ही जैसे नाओमी और रूत ने भरोसा किया कि परमेश्‍वर उनके लिए प्रबन्ध करेगा, वही हमें भी करना चाहिए।

हम रूत में नीतिवचन 31 में लिखी हुई गुणी स्त्री के आदर्श को देखते हैं। अपने परिवार (रूत 1:15-18; नीतिवचन 31:10-12) और परमेश्‍वर के ऊपर विश्‍वासयोग्यता के साथ निर्भर रहने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता (रूत 2:12; नीतिवचन 31:30) के अतिरिक्त, हम रूत में एक धर्मी स्त्री के रूप में वार्तालाप करने वाली स्त्री को देखते हैं। उसके शब्द प्रेम, दया और सम्मान से, दोनों ही अर्थात् नाओमी और बोआज के लिए भरे हुए मिलते हैं। नीतिवचन 31 में लिखी हुई गुणवान् स्त्री "बुद्धि की बात बोलती है, और उसके वचन कृपा की शिक्षा के अनुसार होते हैं" (वचन 26)। हम कदाचित् ही आज रूत जैसे आदर्श पूर्ण जीवन वाली एक स्त्री को अपने लिए आदर्श के रूप में ढूँढ पाएँ।



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